नई दिल्ली: रिलायंस समूह (Reliance Group) के चेयरमैन अनिल अंबानी (Anil Ambani) मंगलवार, 5 अगस्त 2025 को प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate – ED) के सामने पेश हुए। उनसे उनके समूह की कंपनियों के ख़िलाफ़ करोड़ों रुपये की कथित बैंक ऋण धोखाधड़ी (bank loan fraud) से जुड़े धन शोधन (money laundering) के एक मामले में पूछताछ की गई। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि ईडी ने 66 वर्षीय अनिल अंबानी का बयान धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत दर्ज किया है।
क्यों ED के निशाने पर हैं Anil Ambani?
सूत्रों के अनुसार, यह कार्रवाई रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर (R Infra) सहित Anil Ambani की कई कंपनियों द्वारा कथित वित्तीय अनियमितताओं (financial irregularities) और ₹17,000 करोड़ से ज़्यादा के सामूहिक ऋण के हेरफेर से संबंधित है।
– येस बैंक (Yes Bank) लोन: पहला आरोप 2017 से 2019 के बीच येस बैंक द्वारा अंबानी समूह की कंपनियों को दिए गए लगभग ₹3,000 करोड़ के “अवैध” ऋणों के गलत इस्तेमाल से जुड़ा है। ईडी को शक है कि ऋण दिए जाने से ठीक पहले येस बैंक के प्रमोटरों ने अपनी कंपनियों में पैसा “प्राप्त” किया था। एजेंसी इस ‘रिश्वत’ (bribe) और ऋण के गठजोड़ की जाँच कर रही है।
– बैंक नीति का उल्लंघन: ईडी इस बात की भी जाँच कर रहा है कि क्या येस बैंक ने अपनी ऋण नीति का उल्लंघन करते हुए पिछली तारीख के ऋण अनुमोदन मेमो जारी किए और बिना किसी उचित जाँच के ही ऋण स्वीकृत कर दिए थे।
– शेल कंपनियों का इस्तेमाल: आरोप है कि इन ऋणों को कई समूह कंपनियों और मुखौटा कंपनियों (shell companies) में भेजा गया था, जिनकी जाँच की जा रही है।
ED की कार्रवाई और ‘लुकआउट सर्कुलर’
ईडी ने इस मामले में पहले से ही Anil Ambani के ख़िलाफ़ एक ‘लुकआउट सर्कुलर’ (LOC) जारी किया है। इसके अलावा, इस हफ़्ते उनके समूह के कुछ और अधिकारियों को भी पूछताछ के लिए बुलाया गया है।
– एक गिरफ़्तारी: इसी मामले से जुड़े एक और केस में, ईडी ने हाल ही में ओडिशा की एक कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर (MD), पार्थ सारथी बिस्वाल (Partha Sarathi Biswal) को गिरफ़्तार किया था। उन पर अनिल अंबानी समूह की एक कंपनी के लिए ₹68 करोड़ की फ़र्ज़ी बैंक गारंटी देने का आरोप है। सूत्रों के अनुसार, बिस्वाल और अंबानी को आमने-सामने बिठाकर भी पूछताछ की जा सकती है।
किन रिपोर्ट्स के आधार पर हो रही है जाँच?
Anil Ambani के खिलाफ धन शोधन का यह मामला सिर्फ़ एक एजेंसी की रिपोर्ट पर आधारित नहीं है, बल्कि कई एजेंसियों की जाँच के बाद सामने आया है:
– सीबीआई (CBI): केंद्रीय जाँच ब्यूरो की कम से कम दो प्राथमिकी (FIR)।
– अन्य एजेंसियाँ: राष्ट्रीय आवास बैंक, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI), राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण और बैंक ऑफ़ बड़ौदा द्वारा ईडी के साथ साझा की गई रिपोर्ट।
ये सभी रिपोर्टें यह संकेत देती हैं कि यह बैंकों, शेयरधारकों, निवेशकों और अन्य सार्वजनिक संस्थानों को धोखा देकर जनता के पैसे का हेरफेर करने की एक “सुनियोजित और सोची-समझी साजिश” (well-planned conspiracy) थी।
सेबी की रिपोर्ट: सेबी की एक रिपोर्ट के आधार पर, ईडी जिस दूसरे आरोप की जाँच कर रही है, उसके अनुसार रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर (R Infra) ने सीएलई नामक एक कंपनी के माध्यम से रिलायंस समूह की कंपनियों में अंतर-कॉरपोरेट जमा (Inter-Corporate Deposits – ICD) के रूप में पैसों का हेरफेर किया। आरोप है कि शेयरधारकों और ऑडिट कमेटी से मंजूरी से बचने के लिए R Infra ने CLE को अपनी “संबंधित पार्टी” (related party) के रूप में नहीं दिखाया।
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