Thursday, July 31, 2025

Tata Communications को ₹7,800 करोड़ का AGR मांग नोटिस: दूरसंचार विभाग की बड़ी कार्रवाई, कंपनी ने दिया जवाब!

नई दिल्ली: दूरसंचार विभाग (DoT – Department of Telecommunications) ने टाटा कम्युनिकेशंस (Tata Communications) को समायोजित सकल राजस्व (AGR – Adjusted Gross Revenue) बकाया राशि के संबंध में लगभग ₹7,800 करोड़ का एक ‘कारण बताओ एवं मांग नोटिस’ (show-cause-cum-demand notice) जारी किया है। यह नोटिस कंपनी को एक आधिकारिक नोट के माध्यम से मिला है, और यह दूरसंचार क्षेत्र में चल रहे AGR विवाद की जटिलताओं को उजागर करता है।

Tata Communications नोटिस का विवरण 

कंपनी द्वारा जारी एक आधिकारिक नोट में यह जानकारी दी गई है। दूरसंचार विभाग के 17 जुलाई, 2025 के नोट के अनुसार, यह मांग वित्तीय वर्ष 2005-06 से 2023-24 तक के AGR के लिए की गई है। यह एक लंबी अवधि को कवर करता है, जो पिछले दो दशकों में कंपनी के परिचालन से संबंधित है।

टाटा कम्युनिकेशंस के प्रबंध निदेशक (MD – Managing Director) ए एस लक्ष्मीनारायण (A S Lakshminarayanan) ने कहा, “कंपनी को 30 जून, 2025 तक भारतीय दूरसंचार विभाग से वित्त वर्ष 2005-06 से वित्त वर्ष 2023-24 तक के लिए कुल ₹7,827.55 करोड़ के ‘कारण बताओ-सह-मांग नोटिस’ (मांग नोटिस) प्राप्त हुए हैं।”

Tata Communications विवादित कटौतियां 

लक्ष्मीनारायण ने स्पष्ट किया कि मांग नोटिस में इंटरनेट सेवा प्रदाता (ISP – Internet Service Provider) लाइसेंस के तहत वित्त वर्ष 2010-11 के लिए और राष्ट्रीय लंबी दूरी (NLD – National Long Distance) लाइसेंस के तहत वित्त वर्ष 2006-07 और वित्त वर्ष 2009-10 के लिए भुगतान के आधार पर कंपनी द्वारा दावा की गई कटौती की अस्वीकृति (disallowance of deductions claimed) के लिए ₹276.68 करोड़ शामिल हैं।

AGR की गणना में, दूरसंचार कंपनियां अक्सर कुछ राजस्व मदों को घटाने का दावा करती हैं, लेकिन दूरसंचार विभाग इन कटौतियों को स्वीकार नहीं करता है, जिससे बकाया राशि बढ़ जाती है।

Tata Communications अपीलें और कानूनी लड़ाई जारी

टाटा कम्युनिकेशंस ने अंतर्राष्ट्रीय लंबी दूरी (ILD – International Long Distance), NLD और ISP लाइसेंस से संबंधित अपीलें (appeals) की हैं, जो वर्तमान में उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) और दूरसंचार न्यायाधिकरण (TDSAT – Telecom Disputes Settlement and Appellate Tribunal) में लंबित हैं। यह दर्शाता है कि यह AGR विवाद एक लंबी कानूनी लड़ाई का हिस्सा है जो भारतीय दूरसंचार क्षेत्र में दशकों से चली आ रही है।

लक्ष्मीनारायण ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि कंपनी की अपीलें यूएएसएल (UASL – Unified Access Service License) नामक पुरानी दूरसंचार लाइसेंस व्यवस्था के तहत AGR पर 24 अक्टूबर, 2019 के शीर्ष न्यायालय के फैसले के दायरे में नहीं आती हैं। सुप्रीम कोर्ट का 2019 का फैसला, जिसने दूरसंचार कंपनियों पर भारी AGR बकाया लगाया था, मुख्य रूप से एक्सेस सर्विस प्रोवाइडर्स पर केंद्रित था, जबकि टाटा कम्युनिकेशंस का मामला ILD, NLD और ISP लाइसेंस से संबंधित है, जिनके AGR गणना के तरीके अलग हैं।

Tata Communications AGR विवाद की पृष्ठभूमि

AGR विवाद भारतीय दूरसंचार क्षेत्र में एक जटिल और लंबे समय से चला आ रहा मुद्दा है। यह विवाद इस बात पर केंद्रित है कि दूरसंचार कंपनियों द्वारा सरकार को भुगतान की जाने वाली लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क की गणना के लिए किस राजस्व को AGR में शामिल किया जाना चाहिए। सरकार का दावा है कि AGR में गैर-दूरसंचार राजस्व को भी शामिल किया जाना चाहिए, जबकि कंपनियां केवल दूरसंचार सेवाओं से होने वाले राजस्व को शामिल करने की वकालत करती हैं। इस विवाद ने अतीत में कई दूरसंचार कंपनियों को भारी वित्तीय बोझ में डाल दिया है।

Tata Communications के लिए बड़ी चुनौती

टाटा कम्युनिकेशंस को मिला यह मांग नोटिस कंपनी के लिए एक महत्वपूर्ण वित्तीय चुनौती पेश करता है। हालाँकि, कंपनी कानूनी रास्ते अपना रही है और अपीलें विभिन्न न्यायालयों में लंबित हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि भारतीय दूरसंचार क्षेत्र के लिए एक बड़े मुद्दे के रूप में AGR विवाद का यह नया अध्याय कैसे सुलझता है। इस तरह के नोटिस भारतीय दूरसंचार कंपनियों के लिए विनियामक (regulatory) और वित्तीय अनिश्चितता (financial uncertainty) को बढ़ाते हैं।

 

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