नई दिल्ली: भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने म्यूचुअल फंड (mutual fund) उद्योग के लिए एक अहम फ़ैसला लिया है। अब म्यूचुअल फंड वितरकों (distributors) को दिया जाने वाला लेनदेन शुल्क (transaction fee) ख़त्म कर दिया गया है। यह वह शुल्क था जो संपत्ति प्रबंधन कंपनियां (एएमसी) (Asset Management Companies – AMCs) वितरकों को तब देती थीं जब वे किसी निवेशक से एक तय राशि का निवेश लाते थे।
यह फ़ैसला सेबी ने एक लंबी प्रक्रिया के बाद लिया है। मई 2023 में सार्वजनिक परामर्श (public consultation) और इस साल जून में उद्योग परामर्श (industry consultation) के बाद इस बदलाव पर मुहर लगी है।
क्या था पुराना SEBI का नियम?
पहले, म्यूचुअल फंड निवेश की दुनिया में एक ख़ास तरह का नियम लागू था।
– न्यूनतम निवेश पर शुल्क: सेबी के पुराने नियमों के अनुसार, अगर कोई वितरक किसी निवेशक से कम से कम ₹10,000 की सदस्यता राशि (subscription amount) म्यूचुअल फंड में लाता था, तो वह ऐसे लेन-देन शुल्क पाने का हकदार होता था।
– एएमसी देती थी पैसा: यह शुल्क सीधे तौर पर निवेशक की जेब से नहीं जाता था, बल्कि एएमसी ही इस शुल्क का भुगतान करती थी। इसका मकसद वितरकों को ज़्यादा से ज़्यादा ग्राहकों को म्यूचुअल फंड में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करना था।
इस फ़ीस को क्यों हटाया गया?
सेबी का यह फ़ैसला म्यूचुअल फंड बाज़ार में ज़्यादा पारदर्शिता लाने की उसकी लगातार कोशिशों का हिस्सा है।
– निवेशकों के हित में फ़ैसला: इस फ़ीस को हटाने का सबसे बड़ा कारण यह है कि सेबी यह सुनिश्चित करना चाहता है कि वितरक सिर्फ़ पैसे कमाने के लिए लेन-देन पर ज़ोर न दें, बल्कि ग्राहकों को सही और लंबी अवधि के निवेश की सलाह दें।
– बेहतर सलाह को प्रोत्साहन: माना जाता है कि इस तरह के शुल्क की वजह से वितरक कई बार सिर्फ़ उन फंड्स (funds) को बेचने पर ध्यान देते थे जिनसे उन्हें कमीशन मिलता था, न कि उन फंड्स पर जो ग्राहक के लिए सबसे अच्छे होते हैं। इस बदलाव से वितरकों का ध्यान अब ज़्यादा बेहतर सेवा और सही निवेश सलाह पर होगा।
निवेशकों और वितरकों पर क्या होगा असर?
यह फ़ैसला म्यूचुअल फंड उद्योग के दोनों प्रमुख पक्षों, यानी निवेशकों और वितरकों पर अलग-अलग तरह से असर डालेगा।
– निवेशकों के लिए: यह एक अच्छी ख़बर है। अब वितरक बिना किसी ट्रांजैक्शन फ़ीस के दबाव के, निवेशकों को उनके निवेश के लक्ष्यों के हिसाब से सही फंड्स चुनने में मदद कर सकेंगे। इससे गलत-बिक्री (mis-selling) की संभावना भी कम होगी।
– वितरकों के लिए: वितरकों के कमाई के मॉडल में थोड़ा बदलाव आएगा। अब उनकी कमाई ज़्यादातर एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) पर मिलने वाले कमीशन पर निर्भर करेगी। इसका मतलब है कि उन्हें ग्राहकों के साथ लंबे समय तक बने रहना होगा और उनके निवेश को बढ़ाना होगा, तभी उनकी कमाई बढ़ेगी।
सेबी का यह कदम म्यूचुअल फंड बाज़ार में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाने वाला है। यह दिखाता है कि सेबी निवेश की दुनिया को और ज़्यादा पारदर्शी और निवेशक-अनुकूल बनाना चाहता है। यह फ़ैसला वितरकों को ग्राहकों के साथ एक मज़बूत और भरोसेमंद रिश्ता बनाने के लिए प्रोत्साहित करेगा।
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