नई दिल्ली: Tariff पर Indian Drug Manufacturers की प्रतिक्रियाएं : अमेरिका ने भारतीय दवा निर्यात (pharma exports) पर लगाए जाने वाले भारी-भरकम शुल्क (tariff) से अस्थायी राहत देने का फ़ैसला किया है। यह फ़ैसला भारत की उस महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है, जिसके ज़रिए वह अमेरिकी आबादी के लिए सस्ती दवाइयां सुनिश्चित करता है। औषधि निर्यात संवर्धन परिषद (Pharmexcil) ने गुरुवार को यह बात कही।
यह राहत तब मिली है जब अमेरिका ने 6 अगस्त को सभी भारतीय आयातों पर मौजूदा 25% शुल्क के अतिरिक्त 25% शुल्क लगाने की घोषणा की थी, जिससे 27 अगस्त से कुल शुल्क 50% हो जाता। फार्मेक्सिल का मानना है कि यह छूट इस बात का सबूत है कि भारतीय दवाएं अमेरिकी स्वास्थ्य सेवा के लिए कितनी ज़रूरी हैं।
क्यों दी गई भारतीय दवाओं को शुल्क से राहत?
भारत, अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली 40% से ज़्यादा जेनेरिक दवाओं (generic drugs) की आपूर्ति करता है। इन दवाओं में पुरानी बीमारियों, कैंसर और संक्रामक रोगों के उपचार के लिए ज़रूरी दवाइयां शामिल हैं। इस आपूर्ति को बाधित करने से अमेरिका के अपने ही लोगों को सस्ती और सुलभ दवाएं मिलना मुश्किल हो जाएगा।
भारतीय औषधि गठबंधन (Indian Pharmaceutical Alliance – IPA) के महासचिव सुदर्शन जैन ने भी इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि अमेरिकी प्रशासन द्वारा हाल ही में जारी कार्यकारी आदेश में दवा क्षेत्र को तत्काल शुल्क के दायरे से बाहर रखा गया है। उन्होंने कहा कि जेनेरिक दवाइयां अमेरिका में किफायती स्वास्थ्य सेवा के लिए महत्वपूर्ण हैं और आमतौर पर बहुत कम मार्जिन (low margins) पर उपलब्ध हैं।
शुल्क का बोझ अमेरिकी उपभोक्ताओं पर पड़ेगा: फार्मेक्सिल
फार्मेक्सिल के चेयरमैन नमित जोशी ने अपने एक बयान में इस बात पर ज़ोर दिया कि भारतीय दवा कंपनियों पर शुल्क लगाने का सीधा असर अमेरिकी उपभोक्ताओं पर पड़ेगा।
– कम लागत वाली दवाएं: उन्होंने कहा कि भारतीय कंपनियाँ कम लागत वाली जेनेरिक दवाइयां बनाती हैं, न कि बहुत ज़्यादा मार्जिन वाले प्रोडक्ट।
– कीमत में वृद्धि: इसलिए, किसी भी शुल्क का भार कंपनियों पर नहीं, बल्कि सीधे अमेरिकी उपभोक्ताओं पर पड़ेगा, जिससे उनके लिए दवाइयां खरीदना महंगा हो जाएगा।
यह बयान इस मुद्दे को सिर्फ़ एक व्यापारिक विवाद के बजाय, आम अमेरिकी नागरिकों की स्वास्थ्य ज़रूरतों से जोड़ता है।
गुणवत्ता और क्षमता में भारत का कोई मुक़ाबला नहीं
नमित जोशी ने यह भी साफ़ किया कि भारतीय दवा उद्योग की गुणवत्ता और क्षमता बेजोड़ है।
– FDA की मंजूरी: भारत में 700 से ज़्यादा ऐसे संयंत्र हैं, जिन्हें अमेरिकी FDA (Food and Drug Administration) की मंजूरी मिली हुई है।
– कड़े बाज़ार में निर्यात: भारत अपने 55% से ज़्यादा दवा प्रोडक्ट का निर्यात अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ जैसे कड़े विनियमित बाज़ारों को करता है, जो इसकी उत्कृष्ट गुणवत्ता मानकों का प्रमाण है।
जोशी ने कहा कि अमेरिका को भारत की इस क्षमता और लागत दक्षता को हासिल करने में कम से कम तीन से पाँच साल का समय लगेगा।
वैश्विक दवा आपूर्ति शृंखला की अखंडता महत्वपूर्ण
इस पूरे मामले में फार्मेक्सिल ने वैश्विक दवा आपूर्ति शृंखला (global drug supply chain) की अखंडता की रक्षा के लिए निरंतर सहयोग का आग्रह किया है। उनका मानना है कि इस तरह के शुल्क न सिर्फ़ किसी एक देश, बल्कि पूरे वैश्विक स्वास्थ्य इकोसिस्टम (ecosystem) के लिए ख़तरा बन सकते हैं।
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