Friday, August 1, 2025

FADA ने ब्याज दर कटौती को लेकर Private Banks के खिलाफ RBI Governor से लगाई गुहार

नई दिल्ली: वाहन उद्योग से जुड़ी एक बड़ी खबर सामने आई है। वाहन विक्रेताओं के संगठन के महासंघ (FADA – Federation of Automobile Dealers Associations) ने निजी बैंकों (private banks) द्वारा वाहन खरीदारों को ब्याज दरों (interest rates) में कटौती का लाभ देने में हो रही कथित देरी के खिलाफ भारतीय रिजर्व बैंक (RBI – Reserve Bank of India) से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। फाडा का आरोप है कि आरबीआई द्वारा रेपो दर (repo rate) में कटौती का पूरा फायदा ग्राहकों तक नहीं पहुंच रहा है, खासकर निजी बैंकों के माध्यम से।

ब्याज दर लाभ सुनिश्चित करने की अपील

फाडा ने इस मुद्दे को लेकर सीधे आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा (Sanjay Malhotra) को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में, फाडा ने आरबीआई से अपील की है कि वह वाहन ऋण पोर्टफोलियो (vehicle loan portfolio) में निजी बैंकों द्वारा रेपो दर में कटौती को लागू करने में हो रही देरी की समीक्षा करें। फाडा ने यह भी गुहार लगाई है कि आरबीआई ऐसे सुधारात्मक निर्देश (corrective directives) जारी करे, जिससे वाहन उधारकर्ताओं (vehicle borrowers) को रेपो दर में कटौती का 100 प्रतिशत लाभ सुनिश्चित हो सके। यह मांग ग्राहकों के हितों की रक्षा के लिए की गई है, ताकि उन्हें आरबीआई की नीतिगत दरों में बदलाव का पूरा फायदा मिल सके।

ब्याज दर कटौती में देरी: फाडा की प्रमुख चिंताएं

फाडा के उपाध्यक्ष साई गिरिधर (Sai Giridhar) ने इस मामले पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “आरबीआई ने अपने इतिहास में नीतिगत दरों में सबसे तेज़ कटौती की है, जो अर्थव्यवस्था के लिए एक स्पष्ट सकारात्मक संकेत है। फिर भी, खुदरा वाहन क्षेत्र में इसका लाभ पूरी तरह से दिखाई नहीं दे रहा है।” उनका यह बयान इस बात पर प्रकाश डालता है कि केंद्रीय बैंक के प्रयासों के बावजूद, अंतिम उपभोक्ता तक इसका प्रभाव क्यों नहीं पहुंच रहा है।

गिरिधर ने आगे बताया कि “जहां सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (public sector banks) वाहन उधारकर्ताओं को रेपो दर में कटौती का लाभ तुरंत देते हैं, वहीं कई निजी बैंक आंतरिक लागत-मूल्यांकन (internal cost-assessment) के बहाने इसे लागू करने में देरी करते हैं।” यह फाडा की मुख्य शिकायत है, क्योंकि यह असमानता ग्राहकों के लिए अनुचित प्रतिस्पर्धा पैदा करती है और उन्हें अधिक ब्याज दर का भुगतान करने के लिए मजबूर करती है। निजी बैंकों द्वारा लगाए गए “आंतरिक लागत-मूल्यांकन” जैसे बहाने, पारदर्शिता की कमी को भी दर्शाते हैं।

फाडा की मांगें: पारदर्शिता और सख्त निगरानी

निजी बैंकों द्वारा ब्याज दरों में कटौती का लाभ पहुंचाना सुनिश्चित करने के लिए, फाडा ने आरबीआई से निम्नलिखित महत्वपूर्ण कदम उठाने का आग्रह किया है:

1. सख्त और समयबद्ध निगरानी (strict and time-bound monitoring): फाडा ने आरबीआई से आग्रह किया है कि वह ‘सभी बैंकिंग संस्थानों में नीतिगत दरों में बदलावों की सख्त और समयबद्ध निगरानी करे और उन्हें लागू करे।’ यह सुनिश्चित करेगा कि बैंक, चाहे वे सार्वजनिक हों या निजी, आरबीआई के निर्देशों का पालन समय पर करें।

2. लागत की गणना का सार्वजनिक खुलासा (public disclosure of cost calculation): महासंघ ने पारदर्शिता बढ़ाने के लिए बैंकों की निधियों की लागत की गणना (calculation of cost of funds) का समय-समय पर सार्वजनिक खुलासा करने का भी सुझाव दिया है। इससे ग्राहकों और नियामक दोनों को यह समझने में मदद मिलेगी कि बैंक अपनी ब्याज दरों को कैसे निर्धारित कर रहे हैं और क्या वे वास्तव में नीतिगत दर में कटौती का लाभ दे रहे हैं।

ब्याज दर कटौती और आर्थिक प्रभाव

आरबीआई द्वारा नीतिगत दरों में कटौती का मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था में ऋण की लागत को कम करना और उपभोक्ता खर्च व निवेश को बढ़ावा देना है। वाहन क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और वाहनों की बिक्री में वृद्धि आर्थिक गतिविधि का एक अच्छा संकेतक मानी जाती है। यदि वाहन ऋण पर ब्याज दरें ऊंची बनी रहती हैं, तो यह नए वाहन खरीदने की ग्राहकों की क्षमता को प्रभावित करता है, जिससे वाहन उद्योग की बिक्री और अंततः समग्र आर्थिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

फाडा की यह पहल वाहन उद्योग के साथ-साथ उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। अब देखना यह होगा कि आरबीआई इस मामले पर क्या कार्रवाई करता है और क्या निजी बैंक फाडा की चिंताओं को दूर करने के लिए कदम उठाते हैं।

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