Friday, August 1, 2025

Battery waste management पर्यावरणीय जरुरत ही नहीं, बल्कि India के लिए एक Strategic Opportunity- राधिका कालिया

नई दिल्ली: जैसे-जैसे दुनिया इलेक्ट्रिक वाहनों (Electric Vehicles – EVs) और नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों (Renewable Energy Systems) की ओर तेज़ी से बढ़ रही है, एक नई चुनौती भी सामने आ रही है – बैटरी अपशिष्ट का प्रबंधन (Battery Waste Management)। लेकिन भारत के लिए, यह सिर्फ एक पर्यावरणीय समस्या नहीं, बल्कि एक बड़ा रणनीतिक अवसर है। आरएलजी सिस्टम्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (RLG Systems India Pvt Ltd.) की एमडी राधिका कालिया (Radhika Kalia) का मानना है कि ईवी अपनाने की तेज़ गति और बैटरियों की बढ़ती मांग ने भारत के समक्ष इस कचरे को लिथियम (lithium), कोबाल्ट (cobalt) और निकेल (nickel) जैसे महत्वपूर्ण खनिजों के लिए एक रणनीतिक संसाधन में बदलने का दोहरा अवसर प्रस्तुत किया है, और साथ ही एक स्थायी, चक्राकार अर्थव्यवस्था (Circular Economy) को स्थापित करने में भी मदद मिलेगी।

बैटरी अपशिष्ट: आयात पर निर्भरता घटाने का सुनहरा मौका

राधिका कालिया बताती हैं, “बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन केवल एक पर्यावरणीय आवश्यकता नहीं, बल्कि भारत के लिए एक रणनीतिक अवसर है।” वह कहती हैं कि अगर हम संसाधनों को परंपरागत खनन (traditional mining) के बजाय शहरी खनन (urban mining) और रीसाइक्लिंग (recycling) से प्राप्त करना शुरू करें, तो हम न केवल आयात पर निर्भरता घटा सकते हैं, बल्कि स्थायी विकास और रोजगार सृजन (job creation) के नए द्वार भी खोल सकते हैं।

भारत वर्तमान में लिथियम, कोबाल्ट और निकेल जैसे महत्वपूर्ण खनिजों के लिए आयात पर बहुत अधिक निर्भर है, खासकर चीन पर, जो वैश्विक स्तर पर 85% महत्वपूर्ण खनिजों को रिफाइन (refine) करता है। आयात पर यह निर्भरता ही भारत के लिए ऊर्जा आत्मनिर्भरता (energy self-reliance) की तत्काल आवश्यकता को दर्शाती है। नेशनल क्रिटिकल मिनरल्स मिशन (National Critical Minerals Mission – NCMM), जिसे ₹34,300 करोड़ की निवेश सहायता से पोषित किया जा रहा है, इसी चुनौती से निपटने के लिए घरेलू खोज, विदेशी संपत्तियों की खरीद और एक मजबूत रीसाइक्लिंग ढांचे पर ध्यान दे रहा है। बैटरी कचरे का पुनर्चक्रण न केवल अरबों की आयात बचत कर सकता है, बल्कि शहरी खनन में रोजगार भी उत्पन्न कर सकता है और भारत को ग्लोबल साउथ (Global South) के लिए एक रीसाइक्लिंग केंद्र बना सकता है।

आरएलजी सिस्टम्स इंडिया अपने रीसाइक्लर-पार्टनरों के साथ मिलकर न केवल बैटरी कचरे का संगठित संकलन (organized collection) कर रही है, बल्कि तकनीक-आधारित ट्रैकिंग और ईपीआर क्रेडिट्स (Extended Producer Responsibility Credits) जैसे डिजिटल समाधानों (digital solutions) के माध्यम से एक पारदर्शी और भरोसेमंद प्रणाली को सशक्त बना रही है। राधिका का कहना है कि उनकी कोशिश है कि बैटरी रीसाइक्लिंग को एक छाया गतिविधि (shadow activity) से निकालकर मुख्यधारा की औद्योगिक प्रक्रिया (mainstream industrial process) में बदला जाए, जहाँ हर बैटरी एक संभावित आर्थिक संपत्ति हो और हर अपशिष्ट एक हरित भविष्य की नींव बन सके।

चुनौतियाँ और समाधान: एक मजबूत रीसाइक्लिंग फ्रेमवर्क की ज़रूरत

हालांकि, यह रास्ता चुनौतियों से खाली नहीं है। भारत के अनौपचारिक अपशिष्ट क्षेत्र (informal waste sector), जो ई-कचरे के एक महत्वपूर्ण हिस्से को संभालता है, और औपचारिक प्रणालियों में एकीकरण (integration) का अभाव है। रिवर्स लॉजिस्टिक्स (reverse logistics) की कमी कुशल संग्रहण को बाधित करती है, वहीं बैटरी स्क्रैप पर 18% तक की जीएसटी (GST) दरें औपचारिक रीसाइक्लिंग में बाधा बनती हैं। उन्नत प्रक्रियाओं, जैसे हाइड्रोमेटलर्जी (hydrometallurgy), में तकनीकी पिछड़ापन भी चुनौतियां पैदा करता है, जहाँ चीन को प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिली हुई है।

हालांकि, भारत अब अनुसंधान एवं विकास (Research & Development – R&D) और नीतिगत सुधारों (policy reforms) पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। जीएसटी को 5% तक कम करना और बैटरी की स्थिति जांचने के लिए एआई आधारित तकनीक (AI-based technology) को लागू करना, इन खाइयों को भरने में सहायक हो सकता है। 2026–28 तक, लिथियम रीसाइक्लिंग हब (lithium recycling hubs) और क्रिटिकल मिनरल्स ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म (critical minerals trading platforms) की योजना एक सक्रिय दृष्टिकोण (proactive approach) को दर्शाती है।

स्टील उद्योग से सीख और वैश्विक संदर्भ

स्टील उद्योग इस दिशा में एक प्रासंगिक उदाहरण प्रस्तुत करता है। रिपोर्टों के अनुसार, भारत का स्टील क्षेत्र, जो वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का लगभग 7% करता है, अब अपशिष्ट ऊष्मा पुनर्प्राप्ति (waste heat recovery), स्क्रैप रीसाइक्लिंग और ग्रीन हाइड्रोजन (green hydrogen) जैसी हरित प्रथाओं को अपना रहा है। स्टील की 100% रीसाइक्लिंग क्षमता और राष्ट्रीय स्टील स्क्रैप रीसाइक्लिंग नीति (National Steel Scrap Recycling Policy), जिसका लक्ष्य 2030 तक स्क्रैप उपयोग को दोगुना करना है, यह दर्शाते हैं कि रीसाइक्लिंग कैसे उत्सर्जन और संसाधन उपयोग को कम कर सकती है। इसी तरह, बैटरी रीसाइक्लिंग भी पारंपरिक खनन की तुलना में 60% तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (greenhouse gas emissions) और 75% तक ऊर्जा उपयोग (energy consumption) कम कर सकती है।

वर्तमान वैश्विक प्रयास भारत की महत्वाकांक्षाओं को और भी प्रासंगिक बनाते हैं। लंदन मेटल एक्सचेंज द्वारा कम कार्बन वाले एल्युमीनियम, कॉपर, निकल और जिंक के लिए संधारणीय धातु मूल्य प्रीमियम (Sustainable Metal Price Premium) की खोज, ग्रीन मेटल के लिए बढ़ते बाजार को दर्शाती है। कनाडा की लिथियम खदान में वोक्सवैगन का $48.1 मिलियन का निवेश महत्वपूर्ण खनिजों के लिए रणनीतिक दौड़ को रेखांकित करता है। काबिल (Khanij Bidesh India Ltd – KABIL) और ओएनजीसी विदेश (ONGC Videsh) जैसी भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियाँ विदेशी परिसंपत्तियों का अधिग्रहण कर रही हैं, लेकिन भू-राजनीतिक जोखिमों (geopolitical risks) और जलवायु वित्त (climate finance) की कमी को कम करने के लिए घरेलू रीसाइक्लिंग महत्वपूर्ण बनी हुई है।

भविष्य की रणनीति: भारत को बनाना है ग्रीन मेटल सस्टेनेबिलिटीका ग्लोबल लीडर

बैटरी कचरे की पूरी क्षमता को प्राप्त करने के लिए भारत को चाहिए कि वह नीतिगत सुधारों को तेज़ करे, अनौपचारिक कचरा क्षेत्र को आईओटी-आधारित ट्रैकिंग (IoT-based tracking) के ज़रिये औपचारिक प्रणाली से जोड़े, और बड़े स्तर पर उपयोगी तकनीकों में निवेश करे। एक चरणबद्ध रणनीति — एआई, ब्रिक्स (BRICS) जैसी वैश्विक साझेदारियों, और कम जीएसटी दरों के ज़रिये — बैटरी कचरे को आर्थिक संपत्ति में बदल सकती है।

2030 तक, यदि रीसाइक्लिंग दरें ऊंची होती हैं और आपूर्ति श्रृंखलाएं औपचारिक रूप लेती हैं, तो भारत ग्रीन मेटल सस्टेनेबिलिटी (Green Metal Sustainability) में एक सुदृढ़ और पर्यावरण-संवेदनशील भविष्य के लिए वैश्विक नेतृत्व स्थापित कर सकता है। यह न केवल पर्यावरण के लिए एक जीत होगी, बल्कि भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता और वैश्विक स्थिति के लिए भी एक बड़ा कदम होगा।

आप बैटरी रीसाइक्लिंग को भारत के लिए कितनी बड़ी प्राथमिकता मानते हैं?

 

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