नई दिल्ली: भारतीय शराब विनिर्माता कंपनियों (Indian liquor manufacturing companies) ने अपने ही देश में भेदभाव का सामना करने का आरोप लगाया है। इन कंपनियों का कहना है कि कई राज्यों की आबकारी नीतियां (excise policies) विदेशी शराब ब्रांडों (foreign liquor brands) को फायदा पहुंचा रही हैं, जबकि भारतीय ब्रांडों को नुकसान हो रहा है। भारतीय मादक पेय निर्माताओं के शीर्ष संगठन सीआईएबीसी (CIABC) ने इस मुद्दे को उठाते हुए कई राज्य सरकारों को पत्र लिखा है। यह आरोप इसलिए भी अहम है, क्योंकि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ (Aatmanirbhar Bharat) के आह्वान के सीधे विपरीत (directly opposite) है।
क्या है भारतीय शराब कंपनियों का आरोप?
सीआईएबीसी ने अपनी शिकायत में दो प्रमुख बिंदुओं (points) पर प्रकाश डाला है, जिनसे भारतीय कंपनियों को नुकसान हो रहा है:
– उच्च ब्रांड पंजीकरण शुल्क: भारतीय ब्रांडों को आयातित बीआईओ (Imported BIO) उत्पादों की तुलना में अत्यधिक उच्च ब्रांड पंजीकरण शुल्क (exorbitantly high brand registration fees) देना पड़ता है। ‘बीआईओ’ का मतलब उन व्हिस्की या स्पिरिट्स से है जिन्हें उनके मूल देश (country of origin) में बोतलबंद (bottled) किया जाता है और उनकी ब्रांडिंग (branding) और पैकेजिंग (packaging) के साथ भारत में आयात (imported) किया जाता है। इस उच्च शुल्क के कारण भारतीय ब्रांडों को कई राज्यों के बाजारों में प्रवेश करने में दिक्कत आती है।
– अत्यधिक उत्पाद शुल्क (Excise Duty): संगठन ने यह भी कहा है कि राज्य सरकारों द्वारा भारतीय प्रीमियम ब्रांड्स पर लगाया जा रहा ऊंचा उत्पाद शुल्क (high excise duty) घरेलू उद्योग को कम प्रतिस्पर्धी (less competitive) बना रहा है। जब नए मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreements – FTAs) लागू होंगे, तो बीआईओ उत्पादों पर सीमा शुल्क (customs duty) और घट जाएगा, जिससे विदेशी ब्रांड और भी सस्ते हो जाएंगे। इससे भारतीय कंपनियों के लिए बाजार में बने रहना और भी कठिन हो जाएगा।
अपने ही देश में क्यों हो रहा है भेदभाव?
यह विडंबना (irony) है कि एक ओर भारतीय प्रीमियम और लक्ज़री ब्रांड दुनिया भर में सराहे जा रहे हैं, अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार (international awards) जीत रहे हैं और ग्लोबल मार्केट (global market) में अपनी पहचान बना रहे हैं, वहीं उन्हें अपने ही देश में शुल्कों से जुड़ी अड़चनों (obstacles) और भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है।
– आत्मनिर्भर भारत के विपरीत: सीआईएबीसी ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह भेदभाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ के आह्वान के विपरीत है। ‘आत्मनिर्भर भारत’ का उद्देश्य घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देना और उन्हें वैश्विक स्तर पर मजबूत बनाना है। लेकिन यह आबकारी नीति ठीक इसके उल्टा कर रही है, जिससे भारतीय उद्योग कमजोर हो रहा है।
– बाजार में असंतुलन: यह भेदभावपूर्ण नीति बाजार में एक असंतुलन (imbalance) पैदा करती है, जहां विदेशी उत्पादों को अत्यधिक फायदा मिलता है और भारतीय उत्पादों को नुकसान उठाना पड़ता है। सीआईएबीसी ने यह भी बताया कि यह भेदभाव लगभग एक दर्जन राज्यों में है।
इन राज्यों की नीतियों पर है सबसे ज्यादा आपत्ति
इसके अलावा, ओडिशा, असम, और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भी यह समस्या सबसे ज्यादा है। इन राज्यों का बाजार बहुत बड़ा है, इसलिए इन नीतियों का असर सीधे भारतीय कंपनियों के कारोबार (business) और राजस्व (revenue) पर पड़ता है। सीआईएबीसी ने इन सभी राज्यों की सरकारों को उनकी आबकारी नीतियों में मौजूद विसंगतियों (discrepancies) के बारे में पत्र लिखकर उन्हें ठीक करने का आग्रह (plea) किया है। यह देखना बाकी है कि राज्य सरकारें इस पर क्या कदम उठाती हैं। एक निष्पक्ष बाजार (fair market) ही घरेलू उद्योग को मजबूत बना सकता है और ‘आत्मनिर्भर भारत’ का सपना पूरा कर सकता है।
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