Monday, August 18, 2025

इस्पात मंत्रालय के नए आदेश से MSMEs पर आया संकट, हजारों करोड़ का कारोबार खतरे में!

नई दिल्ली: सरकार का गुणवत्ता (quality) सुनिश्चित करने का एक कदम (step) देश के सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) (MSME) के लिए एक बड़ा सिरदर्द बन गया है। एक शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने दावा किया है कि इस्पात मंत्रालय के एक नए आदेश से आयात (import) गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है और हजारों छोटे उद्योगों पर इसका नकारात्मक असर (negative impact) पड़ा है।

इस्पात मंत्रालय का नया आदेश क्यों है यह इतना गंभीर?

इस्पात मंत्रालय ने 13 जून को एक आदेश जारी किया, जिसमें यह अनिवार्य (mandatory) कर दिया गया कि भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) (Bureau of Indian Standards – BIS) प्रमाणन (certification) केवल तैयार इस्पात उत्पादों (finished steel products) के लिए ही नहीं, बल्कि उनमें इस्तेमाल होने वाले सभी कच्चे माल (raw materials) के लिए भी जरूरी होगा।

– दोहरी जांच का बोझ: यह नियम दोहरी जांच (double checking) का बोझ पैदा करता है। जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव के अनुसार, इस कदम से मोटर वाहन, मशीनरी (machinery) और कल-पुर्जों (parts) के निर्माण (manufacturing) से जुड़े एमएसएमई बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं।

MSMEs पर पड़ रहा है सीधा असर: बिज़नेस बंद, आर्डर कैंसिल

यह नया नियम कागज पर जितना सीधा लगता है, जमीनी स्तर पर इसके परिणाम (consequences) उतने ही गंभीर हैं। जीटीआरआई ने बताया कि भारत अपनी जरूरत के अनुसार स्टेनलेस स्टील का उत्पादन नहीं करता है, जिसकी वजह से उद्योगों को आयातित स्टेनलेस स्टील पर निर्भर रहना पड़ता है।

– आयात में रुकावट: नए नियम के कारण आयातित खेप (imported consignments) बंदरगाहों (ports) पर फंसी हुई हैं, जिससे विलंब शुल्क (demurrage charges) बढ़ता जा रहा है।

– अनुबंध रद्द: अंतरराष्ट्रीय खरीदार (international buyers) समय पर डिलीवरी न मिलने के कारण अनुबंध (contracts) रद्द कर रहे हैं।

– लागत में वृद्धि: कच्चे माल के अटकने और लागत बढ़ने से एमएसएमई की उत्पादन लागत (production cost) में भी बढ़ोतरी हुई है।

श्रीवास्तव ने कहा कि सबसे अधिक प्रभावित सेक्टरों में वाहनों के कल-पुर्जों का निर्माण, स्टेनलेस स्टील के बर्तन, ट्यूब (tubes) और फास्टनर (fasteners) शामिल हैं।

भारत और अन्य देशों में क्या है अंतर?

भारत के इस कदम की तुलना दुनिया के प्रमुख इस्पात उत्पादक देशों से की जाए तो एक बड़ा अंतर दिखाई देता है।

– अंतरराष्ट्रीय मानदंड: अमेरिका, यूरोपीय संघ (European Union) या जापान जैसे देशों में अंतिम उत्पाद (final product) के गुणवत्ता मानकों (quality standards) को पूरा करने पर कच्चे माल के लिए अलग से राष्ट्रीय प्रमाणीकरण (national certification) की आवश्यकता नहीं होती है।

– ओवर-रेगुलेशन का जोखिम: जीटीआरआई का कहना है कि यह नियम भारत में ओवर-रेगुलेशन (over-regulation) का एक उदाहरण हो सकता है, जो व्यापार को आसान (easy) बनाने की दिशा में चले आ रहे प्रयासों को बाधित करता है।

कोर्ट में भी मामला, सरकार से राहत की उम्मीद

इस आदेश के खिलाफ मद्रास उच्च न्यायालय में एक याचिका (petition) दायर की गई थी, जिसने शुरू में अंतरिम रोक (interim stay) लगा दी थी। हालांकि, 30 जुलाई 2025 को उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने उस आदेश को रद्द कर दिया और मामले को पूरी सुनवाई के लिए वापस भेज दिया।

मंत्रालय ने पहले चिकित्सकीय उपकरण क्षेत्र (medical equipment sector) को कुछ स्टेनलेस स्टील ग्रेड के लिए एक साल की छूट (exemption) दी थी, जिसके बाद अब एमएसएमई भी इसी तरह की राहत की मांग कर रहे हैं। उम्मीद है कि सरकार छोटे उद्योगों की समस्याओं को समझेगी और इस नीति को व्यवहार्य (feasible) बनाने के लिए कोई समाधान निकालेगी। यह समाधान गुणवत्ता नियंत्रण और छोटे व्यवसायों के हितों के बीच एक संतुलन (balance) बनाने के लिए आवश्यक है।

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