नई दिल्ली: जुलाई के महीने में थोक मुद्रास्फीति (Wholesale Inflation) दो साल के सबसे निचले स्तर पर पहुँच गई है। बृहस्पतिवार को जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार, खाद्य वस्तुओं और ईंधन (fuel) की कीमतों में भारी गिरावट के चलते थोक मुद्रास्फीति शून्य से नीचे 0.58 प्रतिशत पर आ गई है। यह लगातार दूसरा महीना है जब थोक मूल्य सूचकांक (WPI) आधारित महंगाई नकारात्मक रही है। जून में यह शून्य से नीचे 0.13% थी, जबकि पिछले साल जुलाई 2024 में यह 2.10% थी।
महंगाई में गिरावट की मुख्य वजह क्या है?
उद्योग मंत्रालय के बयान के अनुसार, थोक मुद्रास्फीति में इस बड़ी गिरावट की मुख्य वजह खाद्य पदार्थों, खनिज तेलों, कच्चे पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस और मूल धातुओं के मैन्युफैक्चरिंग की कीमतों में कमी है।
– सब्जियों के दाम में भारी गिरावट: थोक मूल्य सूचकांक के डेटा के मुताबिक, खाद्य वस्तुओं की कीमतों में जुलाई में 6.29 प्रतिशत की बड़ी गिरावट देखी गई। इसमें सबसे बड़ा योगदान सब्जियों का रहा, जिनके दामों में जुलाई में 28.96 प्रतिशत की गिरावट आई। जून में भी सब्जियों के दाम 22.65 प्रतिशत कम हुए थे।
– फ्यूल और बिजली: फ्यूल (fuel) और बिजली (electricity) की कीमतों में भी नरमी देखी गई, जो जुलाई में 2.43 प्रतिशत रही, जबकि जून में यह 2.65 प्रतिशत थी।
अगस्त में बढ़ सकती है Wholesale Inflation
भले ही जुलाई के आंकड़े काफी राहत भरे हैं, लेकिन विशेषज्ञों ने आने वाले समय के लिए कुछ चिंताएं जताई हैं। उनका मानना है कि अगस्त के महीने में थोक मुद्रास्फीति फिर से बढ़ सकती है।
– आधार प्रभाव (Base Effect): विशेषज्ञों का मानना है कि अगस्त में आधार प्रभाव (base effect) कम हो जाएगा। इसका मतलब है कि पिछले साल अगस्त में महंगाई कम थी, जिससे इस साल की महंगाई की तुलना करने पर वह अधिक दिखेगी।
– बारिश का असर: रेटिंग एजेंसी इक्रा (ICRA) के वरिष्ठ अर्थशास्त्री राहुल अग्रवाल ने कहा कि अगस्त के दूसरे पखवाड़े में हुई भारी बारिश के कारण जल्दी खराब होने वाली खाद्य वस्तुओं (perishable food items) की कीमतें तेजी से बढ़ सकती हैं, जिस पर नजर रखना बेहद महत्वपूर्ण होगा।
खुदरा और थोक महंगाई में क्या अंतर है?
थोक महंगाई (WPI) के साथ-साथ खुदरा महंगाई (Retail Inflation or CPI) भी कम हुई है, जो जुलाई में आठ साल के निचले स्तर 1.55 प्रतिशत पर आ गई है। लेकिन इन दोनों में फर्क है और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) किस पर ज्यादा ध्यान देता है, यह जानना जरूरी है।
– थोक महंगाई (WPI): यह थोक स्तर पर, यानी मैन्युफैक्चरर और ट्रेडर के बीच होने वाले लेन-देन में वस्तुओं की कीमतों में होने वाले बदलाव को मापती है। यह सिर्फ वस्तुओं (goods) पर लागू होती है, सेवाओं (services) पर नहीं।
– खुदरा महंगाई (CPI): यह खुदरा स्तर पर, यानी उपभोक्ता (consumer) द्वारा सीधे खरीदी जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में होने वाले बदलाव को मापती है। आरबीआई अपनी मौद्रिक नीति (Monetary Policy) तय करने के लिए मुख्य रूप से खुदरा महंगाई (CPI) को ही आधार बनाता है।
आरबीआई की रेपो दर और भविष्य का दृष्टिकोण
खुदरा मुद्रास्फीति को ध्यान में रखकर मौद्रिक रुख तय करने वाली आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने इस महीने की शुरुआत में नीतिगत दर रेपो को 5.5 प्रतिशत पर यथावत (unchanged) रखा था। थोक महंगाई में आई इस बड़ी गिरावट से आरबीआई को भविष्य में ब्याज दरों पर फैसला लेने में थोड़ी और लचीलापन (flexibility) मिल सकती है।
उद्योग जगत और विशेषज्ञों की राय
– बार्कलेज (Barclays) ने अपने शोध नोट (research note) में कहा कि थोक मुद्रास्फीति में गिरावट की मुख्य वजह खाद्य और ऊर्जा की कीमतों में नरमी है।
– बैंक ऑफ बड़ौदा की अर्थशास्त्री सोनल बधान ने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध और रूसी तेल पर अमेरिकी प्रतिबंधों जैसी वैश्विक अनिश्चितताओं के कारण भविष्य में तेल की कीमतों में कुछ वृद्धि का दबाव देखने को मिल सकता है।
– पीएचडीसीसीआई के अध्यक्ष हेमंत जैन ने कहा कि खाद्य वस्तुओं की कीमतों में कमी और दक्षिण-पश्चिम मानसून की अच्छी प्रगति से कृषि गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा, जिससे आर्थिक वृद्धि को भी बल मिलेगा।
कुल मिलाकर, जुलाई के आंकड़े अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत हैं, लेकिन विशेषज्ञ मॉनसून और वैश्विक कारकों से पैदा होने वाले भावों के दबाव पर नजर बनाए रखने की सलाह दे रहे हैं।
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