नई दिल्ली/मुंबई: महाराष्ट्र सरकार की वित्तीय प्रबंधन (financial management) पर भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General of India – CAG) ने गंभीर चिंताएं जताई हैं। कैग ने अपनी हालिया रिपोर्ट में राज्य द्वारा ‘बजट से इतर उधारी’ (Off-Budget Borrowings – OBB) पर बढ़ती निर्भरता को लेकर चेतावनी दी है। कैग ने साफ तौर पर कहा है कि इस तरह का चलन राजकोषीय पारदर्शिता (fiscal transparency) को सीधे तौर पर प्रभावित करता है और स्थायी वित्तीय प्रबंधन (sustainable financial management) के लिए इन उधारी को विधायी नियंत्रण (legislative control) में लाया जाना चाहिए।
क्या है ‘बजट से इतर उधारी’ और क्यों है यह चिंता का विषय?
‘बजट से इतर उधारी’ (OBB) का मतलब उन ऋणों (loans) से है जो सीधे राज्य सरकार के बजट में शामिल नहीं होते, बल्कि राज्य के स्वामित्व वाले निगमों, विशेष प्रयोजन वाहनों (Special Purpose Vehicles – SPVs) या अन्य सरकारी संस्थाओं द्वारा लिए जाते हैं। इन ऋणों की गारंटी अक्सर राज्य सरकार देती है, या अंततः इनका भुगतान सरकार की तिजोरी से ही होता है।
वित्त वर्ष 2023-24 के लिए महाराष्ट्र राज्य के वित्त पर कैग की रिपोर्ट, जो शुक्रवार को विधानसभा में पेश की गई, में इस मुद्दे पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बजट से इतर उधारी के जरिये व्यय (expenditure) का वित्तपोषण (financing) करने से राज्य की सार्वजनिक देनदारियां (public liabilities) समय के साथ काफी बढ़ जाती हैं। यह स्थिति राज्य को ‘कर्ज के जाल’ (debt trap) में फंसा सकती है।
कैग की सबसे बड़ी चिंता यह है कि जब ऐसी उधारी ली जाती है, तो विधानसभा (Legislative Assembly) को भी पता नहीं चलता कि ऐसी देनदारियां बन रही हैं। इसका मतलब है कि जनता के प्रतिनिधि, जिनके पास सरकार के खर्चों और ऋणों पर निगरानी रखने की शक्ति है, उन्हें अंधेरे में रखा जाता है। इससे जवाबदेही (accountability) कम होती है और वित्तीय अनुशासन (financial discipline) बिगड़ता है। यह पारदर्शिता के सिद्धांतों का सीधा उल्लंघन है, जो एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए बेहद ज़रूरी है।
राजस्व में भारी कमी: आबकारी विभाग पर कैग की ‘खिंचाई’
सिर्फ बजट से इतर उधारी ही नहीं, कैग की रिपोर्ट में महाराष्ट्र राज्य के आबकारी विभाग (State Excise Department) की कार्यप्रणाली में भी गंभीर खामियों के लिए उसकी कड़ी ‘खिंचाई’ (pulled up) की गई है। इन खामियों के कारण राज्य को राजस्व में भारी कमी का सामना करना पड़ा है।
रिपोर्ट में विशेष रूप से बताया गया है कि लाइसेंस नवीनीकरण शुल्क (license renewal fees) के गलत आकलन (under-assessment) के कारण राज्य को 20.15 करोड़ रुपये के राजस्व का सीधा नुकसान हुआ। इससे भी बढ़कर, इस गलत आकलन पर 70.22 करोड़ रुपये के ब्याज (interest) का भी नुकसान हुआ। यह कुल मिलाकर 90 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान है, जो दर्शाता है कि एक महत्वपूर्ण राजस्व-संग्रह विभाग में कितनी ढिलाई बरती गई।
इस तरह की चूकें न केवल सरकार के राजस्व को कम करती हैं, बल्कि वित्तीय कुप्रबंधन (financial mismanagement) और भ्रष्टाचार की संभावनाओं को भी बढ़ाती हैं। कैग की यह रिपोर्ट आबकारी विभाग की कार्यप्रणाली में तत्काल सुधार की आवश्यकता पर जोर देती है।
राजकोषीय पारदर्शिता और विधायी नियंत्रण का महत्व
कैग ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा है कि इस तरह की उधारी को विधायी नियंत्रण में लाया जाना चाहिए। इसका मतलब है कि विधानसभा को इन सभी ऋणों के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए और उन पर चर्चा व अनुमोदन का अधिकार होना चाहिए। जब ऋण बजट का हिस्सा होते हैं, तो वे सार्वजनिक बहस और scrutiny के अधीन होते हैं, जिससे बेहतर निर्णय लेने में मदद मिलती है।
* पारदर्शिता: ओबीबी को बजट में शामिल करने से सरकार की कुल देनदारियों और वित्तीय स्वास्थ्य की स्पष्ट तस्वीर मिलती है, जिससे निवेशकों और जनता का विश्वास बढ़ता है।
* जवाबदेही: जब विधायिका के पास इन ऋणों पर नियंत्रण होता है, तो सरकार की जवाबदेही बढ़ती है।
* स्थायी वित्तीय प्रबंधन: बिना विधायी नियंत्रण के ली गई उधारी से अक्सर अनियंत्रित खर्च और ऋणों का ढेर लग जाता है, जो राज्य की दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता (long-term financial stability) के लिए खतरा बन सकता है।
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महाराष्ट्र की वित्तीय स्थिति और आगे की चुनौतियां
महाराष्ट्र भारत के सबसे बड़े और सबसे अधिक आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण राज्यों में से एक है। इसकी वित्तीय स्थिति का देश की अर्थव्यवस्था पर भी बड़ा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में, कैग द्वारा उठाई गई ये चिंताएं बेहद महत्वपूर्ण हैं।
राज्य सरकारों के लिए पूंजीगत व्यय (capital expenditure) का वित्तपोषण करना आवश्यक है, जो विकास और बुनियादी ढांचे (infrastructure) के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन यह वित्तपोषण पारदर्शी और स्थायी तरीके से होना चाहिए। यदि राज्य अंधाधुंध ओबीबी पर निर्भर करता है, तो यह भविष्य की पीढ़ियों पर एक बड़ा ऋण बोझ डाल सकता है, जिससे विकास के लिए संसाधनों की कमी हो सकती है।
महाराष्ट्र सरकार को कैग की इस रिपोर्ट को गंभीरता से लेना चाहिए और बजट से इतर उधारी को कम करने और वित्तीय पारदर्शिता बढ़ाने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए। आबकारी विभाग जैसी राजस्व-संग्रह एजेंसियों में सुधार करना भी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए ताकि राज्य के राजस्व में कोई अनावश्यक नुकसान न हो।
क्या आप जानना चाहेंगे कि भारत में अन्य राज्य भी ‘बजट से इतर उधारी’ की समस्या का सामना कर रहे हैं या नहीं?