निजी कंपनियों में Promoters stake 8 साल के निचले स्तर पर: क्या है इसके पीछे की वजह?

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नई दिल्ली: निजी कंपनियों में Promoters stake 8 साल के निचले स्तर पर गया है। भारतीय शेयर बाज़ार में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है। देश में निजी स्वामित्व वाली सूचीबद्ध कंपनियों में प्रवर्तकों (promoters) की हिस्सेदारी अप्रैल-जून तिमाही में गिरकर 40.58 प्रतिशत पर आ गई है, जो पिछले आठ सालों में सबसे कम है। प्राइम डेटाबेस ग्रुप (Prime Database Group) की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस तिमाही में प्रवर्तकों ने कुल ₹54,732 करोड़ (₹54,732 crore) मूल्य की हिस्सेदारी बेची है।

Promoters stake में गिरावट का सिलसिला

रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रवर्तकों की हिस्सेदारी में पिछले तीन सालों से लगातार गिरावट आ रही है। मार्च 2022 में यह हिस्सेदारी 45.13 प्रतिशत पर थी, जिसमें अब तक 4.55 प्रतिशत की कुल गिरावट आ चुकी है। इस तिमाही से पहले, इतनी कम हिस्सेदारी सितंबर 2017 में 40.19 प्रतिशत रही थी।

क्यों बेच रहे हैं प्रवर्तक अपनी हिस्सेदारी?

प्राइम डेटाबेस ग्रुप के प्रबंध निदेशक प्रणव हल्दिया (Pranav Haldea) ने इस गिरावट के कई कारण बताए हैं। उनके अनुसार, प्रवर्तक अपनी हिस्सेदारी बेचने के लिए इन वजहों का इस्तेमाल कर सकते हैं:
– बाज़ार की तेज़ी का फ़ायदा उठाना: जब बाज़ार अच्छा प्रदर्शन कर रहा हो, तो हिस्सेदारी बेचकर मुनाफ़ा कमाना।
– कर्ज़ चुकाने की रणनीति (Debt repayment strategy): कंपनी या व्यक्तिगत कर्ज़ों को चुकाने के लिए फंड जुटाना।
– पारिवारिक उत्तराधिकार की योजना (Family succession planning): अगली पीढ़ी को सत्ता सौंपने की तैयारी में हिस्सेदारी का पुनर्गठन करना।
– परोपकारी उद्देश्य (Philanthropic purposes): दान या सामाजिक कार्यों के लिए धन जुटाना।
– अन्य क्षेत्रों में निवेश (Investment in other sectors): दूसरे बिज़नेस में पैसा लगाना।
– न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता (Minimum Public Shareholding – MPS): बाज़ार के नियमों को पूरा करने के लिए हिस्सेदारी कम करना।
– व्यक्तिगत ख़र्च: अपने निजी ख़र्चों के लिए पैसे जुटाना।

हल्दिया का यह भी मानना है कि हाल ही में आए आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (IPO) में अपेक्षाकृत कम प्रवर्तक हिस्सेदारी और बाज़ार का संस्थागत स्वरूप (institutional character) भी इस गिरावट का एक कारण है।

सरकारी और संस्थागत निवेशकों का बढ़ता दबदबा

एक तरफ़ जहाँ निजी प्रवर्तकों की हिस्सेदारी कम हुई है, वहीं दूसरी तरफ़ कुछ अन्य निवेशकों ने बाज़ार में अपना दबदबा बढ़ाया है:
– सरकार: सूचीबद्ध कंपनियों में प्रवर्तक के तौर पर सरकार की हिस्सेदारी 9.27 प्रतिशत से बढ़कर 9.39 प्रतिशत हो गई है।
– घरेलू संस्थागत निवेशक (DII): इनकी हिस्सेदारी बढ़कर 17.82 प्रतिशत हो गई है, जो अब तक का सर्वोच्च स्तर है। यह दिखाता है कि भारत के घरेलू निवेशक बाज़ार में ज़्यादा भरोसा जता रहे हैं।
– विदेशी संस्थागत निवेशक (FII): इनकी हिस्सेदारी 13 सालों के निचले स्तर 17.04 प्रतिशत पर आ गई, हालाँकि उन्होंने इस तिमाही में ₹38,674 करोड़ का शुद्ध निवेश किया।
– LIC (भारतीय जीवन बीमा निगम): देश के सबसे बड़े संस्थागत निवेशक LIC की हिस्सेदारी 284 कंपनियों में घटकर औसतन 3.68 प्रतिशत रह गई, जबकि इसने भी ₹9,914 करोड़ का शुद्ध निवेश किया।

हल्दिया ने कहा है कि जब तक प्रवर्तकों के पास पर्याप्त हिस्सेदारी बनी रहती है और कंपनी के बुनियादी कारकों में कोई बड़ा बदलाव नहीं होता, तब तक चिंता की कोई बात नहीं है। यह विश्लेषण नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) की सूची में शामिल 2,131 कंपनियों में से 2,086 द्वारा दाखिल किए गए आंकड़ों पर आधारित है।

 

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