Supreme Court ने अंबानी के Vantara के ख़िलाफ़ याचिका को ‘पूरी तरह अस्पष्ट’ बताया

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नई दिल्ली: देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अनंत अंबानी के वनतारा (Vantara), जो कि एक वन्यजीव बचाव एवं पुनर्वास केंद्र है, के ख़िलाफ़ दायर की गई एक याचिका पर सख़्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने इस याचिका को “पूरी तरह से अस्पष्ट” बताया, जिसमें केंद्र में रखे गए पालतू हाथियों को उनके मालिकों को लौटाने के लिए एक निगरानी समिति (monitoring committee) गठित करने का अनुरोध किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने उठाया प्रक्रिया पर सवाल

न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति पी. बी. वराले की पीठ ने याचिकाकर्ता वकील (advocate) सी. आर. जय सुकीन से कहा कि उन्होंने वनतारा (Vantara) पर गंभीर आरोप लगाए हैं, लेकिन उसे मामले में पक्षकार (party) ही नहीं बनाया है।

– कोर्ट का सीधा आदेश: पीठ ने याचिकाकर्ता को साफ़ निर्देश देते हुए कहा, “आप उन पक्षों के ख़िलाफ़ आरोप लगा रहे हैं जो यहां प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे हैं। आपने उन्हें प्रतिवादी नहीं बनाया। आप उन्हें पक्षकार बनाएं और फिर हमारे पास आइए, हम देखेंगे।”

– अगली सुनवाई: सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 25 अगस्त की तारीख तय की है, ताकि याचिकाकर्ता अपनी याचिका में सुधार कर सकें।

याचिका में लगाए गए थे गंभीर आरोप

यह याचिका इससे पहले भारत के प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई के समक्ष तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध की गई थी।

– याचिका की मांगें: याचिका में वनतारा (Vantara) में रखे गए सभी हाथियों को उनके मालिकों को लौटाने और सभी वन्यजीवों व पक्षियों को जंगल में छोड़ने के लिए एक निगरानी समिति के गठन का अनुरोध किया गया था।

– गंभीर आरोप: याचिका में आरोप लगाया गया है कि वनतारा में कानून और नियमों का उल्लंघन हुआ है। इसमें यह भी कहा गया है कि राज्यों का प्रशासन विफल रहा और कुछ अधिकारियों से समझौता किया गया या उन्हें धमकाया गया।

– तस्करी का दावा: याचिका में यह भी आरोप है कि गुजरात में वन्यजीव बचाव एवं पुनर्वास केंद्र के नाम पर राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर के जानवर और पक्षी, जिनमें से कुछ विलुप्तप्राय प्रजातियाँ (endangered species) भी हैं, उनकी तस्करी (smuggling) करके लाए गए हैं।

Supreme Court का यह फ़ैसला दिखाता है कि किसी भी मामले में आरोप लगाने से पहले कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना बेहद ज़रूरी है। अदालत ने याचिकाकर्ता को अपनी याचिका में सुधार करने का मौका दिया है, और अब यह देखना होगा कि अगली सुनवाई में क्या होता है।

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