Walk in My Shoes Campaign : युवाओं में बढ़ती विकलांगता का एक बड़ा कारण है Multiple Sclerosis

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नई दिल्ली: Walk in My Shoes Campaign : भारत में करीब 2 लाख लोग एक ऐसी खतरनाक बीमारी से जूझ रहे हैं, जिसका दर्द और परेशानी अक्सर आंखों से दिखाई नहीं देता । हम बात कर रहे हैं मल्टीपल स्क्लेरोसिस Multiple Sclerosis (MS) की, जो मरीजों के केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (central nervous system) यानी दिमाग और रीढ़ की हड्डी पर हमला करती है । इस छुपी हुई परेशानी के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए, रोशे फार्मा इंडिया ने मल्टीपल स्क्लेरोसिस सोसाइटी ऑफ इंडिया (MSSI) के साथ मिलकर “वॉक इन माई शूज़” (Walk In My Shoes) अभियान की शुरुआत की है ।

यह अभियान लोगों को यह समझाने की कोशिश करता है कि एमएस के मरीजों को रोजमर्रा के साधारण काम जैसे चलना, नहाना, या बच्चे को गोद में उठाना भी किसी पहाड़ पर चढ़ने जैसा कठिन क्यों लगता है ।

अनुभव से सीखें: सिमुलेशन जोन का अनोखा कॉन्सेप्ट

अभियान को खास बनाने वाला एक अनोखा तरीका है सिमुलेशन जोन । इन सिमुलेशन जोन में लोग खुद अनुभव कर सकते हैं कि एमएस के मरीजों को कैसा महसूस होता है । इन जोन्स को खासतौर पर चार मुख्य लक्षणों का एहसास कराने के लिए बनाया गया है :

– संतुलन की कमी (loss of balance) ।
– शरीर पर नियंत्रण कम होना (motor impairment) ।
– धुंधला दिखना (blurred vision) ।
– संवेदना का कम होना (numbness) ।

यह सिमुलेशन जोन दिल्ली के सेलेक्ट सिटी वॉक मॉल में 22 से 24 अगस्त तक, बेंगलुरु के ब्रुकफील्ड इकोस्पेस पार्क में 20 से 22 अगस्त तक, और मुंबई के फीनिक्स मार्केटसिटी में 22 से 24 अगस्त तक लगाए गए हैं ।

सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म का सहारा

अभियान सिर्फ शारीरिक उपस्थिति तक ही सीमित नहीं है । लोगों को अपनी बात रखने के लिए #WalkInMyShoes हैशटैग का इस्तेमाल करने के लिए कहा गया है । आपकी हर पोस्ट, ट्वीट, या रील इस बीमारी के बारे में फैली खामोशी को तोड़ने में मदद करती है ।

इसके साथ ही, एक नई वेबसाइट www.walkinmyshoes.in भी शुरू की गई है । यह वेबसाइट एमएस के बारे में पूरी तरह से सच्ची, भरोसेमंद, और डॉक्टरों द्वारा जांची-परखी जानकारी का एक डिजिटल हब (hub) बनने की कोशिश कर रही है ।

एमएस क्या है? क्यों यह युवाओं में बड़ी समस्या है?

मल्टीपल स्क्लेरोसिस एक ऑटोइम्यून बीमारी (autoimmune disease) है, जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली खुद ही अपने केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर हमला करती है । यह मायलिन शीथ (myelin sheath) को नुकसान पहुंचाती है, जो तंत्रिकाओं को सुरक्षा देती है ।

यह बीमारी अक्सर 20 से 40 साल की उम्र के बीच होती है । यह वह दौर होता है जब लोग अपना करियर, घर और परिवार बना रहे होते हैं । एमएस युवाओं में बिना किसी दुर्घटना के होने वाली विकलांगता का सबसे बड़ा कारण है । डॉक्टरों के अनुसार, यह महिलाओं को पुरुषों की तुलना में दो से तीन गुना ज्यादा प्रभावित करती है ।

डॉक्टरों और विशेषज्ञों की राय 

इस गंभीर समस्या पर रोशनी डालने के लिए अभियान से जुड़े कई विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी ।

राज्जी मेहदवान (प्रबंध निदेशक और सीईओ, रोशे फार्मा इंडिया) ने कहा: “हमारा उद्देश्य सिर्फ दवाइयां बनाना नहीं है । यह अभियान एक मजबूत कॉल टू एक्शन (call to action) है । हमारा मकसद है लोगों के दिलों में सहानुभूति जगाना, और स्वास्थ्य व्यवस्था (health system) में बदलाव लाना ताकि एमएस के मरीजों को सही समय पर सही इलाज मिल सके ।”

बिपाशा गुप्ता (चेयरपर्सन, एमएसएसआई – दिल्ली) ने कहा: “समय पर शुरुआती इलाज बेहद ज़रूरी है, क्योंकि इससे बीमारी बढ़ने की रफ़्तार को धीमा किया जा सकता है । भारत में मरीजों के सामने सबसे बड़ी मुश्किलें जागरूकता की कमी, अधूरा बीमा कवर और महंगा इलाज हैं । जन-जागरूकता अभियान इस समस्या पर आवाज उठाते हैं ।”

डॉ. अंशु रोहतगी (वाइस चेयरपर्सन, न्यूरोलॉजी विभाग, सर गंगाराम अस्पताल) ने कहा: “भारत में एमएस देखभाल का ढाँचा अभी भी बिखरा हुआ है । इसके लक्षण अलग-अलग होने से सही पहचान में देर हो जाती है । ऐसे में सही समय पर बीमारी की पहचान और हाई-एफिकेसी थैरेपीज़ (HETs) का इस्तेमाल ज़रूरी है ताकि स्थायी न्यूरोलॉजिकल नुकसान से बचा जा सके और मरीज एक स्वतंत्र जीवन जी सकें ।”

 

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