नई दिल्ली: बाल यकृत प्रत्यारोपण (Pediatric Liver Transplant) के क्षेत्र में भारत के सबसे बड़े अस्पतालों में से एक अपोलो अस्पताल Apollo Hospital ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है । अस्पताल ने देश में 600 से ज्यादा सफल बाल यकृत प्रत्यारोपण पूरे किए हैं । इस मौके को खास बनाने के लिए अस्पताल ने एक विशेष किताब ‘Transplanting Hope’ लॉन्च की है ।
इस किताब में उन 25 बच्चों की सच्ची और भावनात्मक कहानियां हैं, जिन्होंने गंभीर बीमारी से जूझते हुए यकृत प्रत्यारोपण के बाद एक नया जीवन पाया है ।
गौतम गंभीर ने लिखा ‘जीवन और मौत की जंग’ पर फॉरवर्ड
इस किताब का सबसे खास हिस्सा है, इसकी भूमिका (foreword) जो भारतीय क्रिकेट टीम के मुख्य कोच और पूर्व क्रिकेटर गौतम गंभीर ने लिखी है । गंभीर ने इन कहानियों की तुलना एक क्रिकेट मैच से करते हुए लिखा है कि ये कहानियां पूरी तरह सच्ची, पारदर्शी और ‘जीवन और मौत के बीच लड़ी गई जंग की असली दास्तां’ हैं । उनके शब्दों में, “क्रिकेट की तरह इस किताब की हर कहानी सच्ची है, इसमें कुछ भी बनावटी (artificial) नहीं है । यह पूरी तरह से काली और सफेद है ।”
गंभीर का यह सकारात्मक नजरिया दिखाता है कि यह किताब सिर्फ मेडिकल प्रोसेस (medical process) की बात नहीं करती, बल्कि इंसानी जिजीविषा (will to live) और साहस की गाथाएं भी बताती है ।
‘ट्रांसप्लांटिंग होप’ में क्या है? 25 परिवारों की सच्ची कहानी
इस किताब को अपोलो अस्पताल Apollo Hospital के वरिष्ठ बाल यकृत रोग विशेषज्ञ डॉ. अनुपम सिब्बल और डॉ. स्मिता मल्होत्रा ने लिखा है । यह किताब 25 परिवारों की असली जीवन यात्राओं को करीब से दिखाती है । इसमें न सिर्फ जटिल चिकित्सा प्रक्रियाओं और वैज्ञानिक प्रगति को दिखाया गया, बल्कि यह भी बताया गया कि कैसे बच्चों और उनके माता-पिता ने कठिन हालात में भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा ।
इन कहानियों के जरिए डॉक्टरों ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि चिकित्सा केवल विज्ञान नहीं, बल्कि इंसानियत और साहस का संगम भी है ।
भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली का मील का पत्थर
इस किताब के लॉन्च होने का एक खास समय है । साल 1998 में अपोलो अस्पताल Apollo Hospital ने भारत का पहला सफल बाल यकृत प्रत्यारोपण किया था । तब से लेकर अब तक 26 साल बाद 600 प्रत्यारोपण पूरे होना न केवल चिकित्सा विज्ञान की सफलता माना जा रहा है, बल्कि यह भारत की स्वास्थ्य प्रणाली (healthcare system) के लिए भी एक बड़ा मील का पत्थर (milestone) है ।
अस्पताल के प्रबंध निदेशक (Managing Director) पी. शिवकुमार ने कहा, “यह उपलब्धि सिर्फ अपोलो अस्पताल की नहीं, बल्कि पूरे भारतीय स्वास्थ्य जगत की उपलब्धि है । हमारा संकल्प हमेशा यही रहा है कि हर बच्चे को जीवन का मौका और हर परिवार को उम्मीद मिले ।”
डॉक्टरों की राय: विज्ञान और संवेदना का संगम
पुस्तक के लेखक और अपोलो समूह के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. अनुपम सिब्बल कहते हैं, “जब किसी बच्चे का जीवन एक धागे पर टिका हो, तो यह एहसास होता है कि डॉक्टर होना सिर्फ विज्ञान तक सीमित नहीं है । यह उम्मीद, हिम्मत और संवेदना का भी काम है । इस किताब से हम समाज को उन नन्हें योद्धाओं की ताकत दिखाना चाहते हैं ।”
वहीं, इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स की वरिष्ठ बाल चिकित्सा गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट डॉ. स्मिता मल्होत्रा ने कहा कि यह किताब सिर्फ सफलताओं की दास्तान नहीं है, बल्कि उन पीड़ादायक क्षणों को भी सामने लाती है जब हर कोशिश के बावजूद जीवन नहीं बच पाया । उन्होंने कहा, “हर हार हमें यह याद दिलाती है कि आगे और मेहनत करने की जरूरत है । यही जज्बा हमें नई खोज और बेहतर इलाज की तरफ ले जाता है ।”
इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स Apollo Hospitals के मुख्य लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. नीरव गोयल ने कहा, “यह पुस्तक हमारे दैनिक कार्यों के सार को खूबसूरती से प्रस्तुत करती है, जिसमें चिकित्सा क्षेत्र में हुई उपलब्धियों का जश्न मनाते हुए उनके पीछे की भावनात्मक यात्रा (emotional journey) का सम्मान किया है ।”
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