Indiabulls case में पेश न होने पर Supreme Court ने CBI को लगाई कड़ी फटकार

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नई दिल्ली: देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था, उच्चतम न्यायालय (Supreme Court), ने सोमवार को इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (Indiabulls Housing Finance Limited – IHFL) से जुड़े एक हाई-प्रोफाइल मामले में पेश न होने पर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation – CBI) को कड़ी फटकार लगाई है। यह मामला IHFL, जिसे अब सम्मान कैपिटल लिमिटेड (Samman Capital Limited) के नाम से जाना जाता है, द्वारा कॉरपोरेट संस्थाओं (corporate entities) को कथित रूप से संदिग्ध ऋण (dubious loans) देने से जुड़ा हुआ है।

सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख: CBI की अनुपस्थिति पर गंभीर सवाल

न्यायमूर्ति सूर्यकांत (Surya Kant) और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची (Joymalya Bagchi) की पीठ ने CBI की अनुपस्थिति पर नाराजगी व्यक्त करते हुए तीखे सवाल उठाए। पीठ ने कहा, “CBI को नोटिस जारी करने के बावजूद वह हमारे सामने पेश क्यों नहीं हुई? CBI कैसे कह सकती है कि हम अदालत में पेश नहीं होंगे? क्या CBI में हमारे सामने पेश न होने की हिम्मत है? CBI के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों को हमारे सामने आने दीजिए।” यह टिप्पणी CBI जैसी देश की प्रमुख जांच एजेंसी के प्रति न्यायालय के सख्त रवैये को दर्शाती है, जब वह अपेक्षित सहयोग नहीं करती।

मामले की जड़: संदिग्ध ऋण और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप

यह मामला सिटिजन्स व्हिसल ब्लोअर फोरम (Citizens Whistle Blower Forum) द्वारा उठाया गया था, जिसकी ओर से वकील प्रशांत भूषण (Prashant Bhushan) पेश हुए। भूषण ने आरोप लगाया कि इंडियाबुल्स कंपनियों को हजारों करोड़ रुपये का ऋण देती थी, जिसके बदले में ये कंपनियां गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (Non-Banking Financial Company – NBFC) के प्रवर्तकों (promoters) को करोड़ों रुपये के असुरक्षित ऋण (unsecured loans) देती थीं। यह एक संदिग्ध ‘राउंड ट्रिपिंग’ (round tripping) या मनी लॉन्ड्रिंग (money laundering) का संकेत हो सकता है, जहाँ पैसे को घुमा-फिरा कर वैधता देने की कोशिश की जाती है।

प्रवर्तन निदेशालय (ED) और CBI की भूमिका

प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate – ED) की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू (S V Raju) ने कहा कि एजेंसी इस मामले की जांच कर रही है। हालांकि, जहां तक CBI का सवाल है, राजू ने कहा कि एक औपचारिक शिकायत (formal complaint) दर्ज होनी चाहिए।

इस पर शीर्ष न्यायालय ने पलटवार करते हुए कहा, “CBI न्यायिक रिकॉर्ड के आधार पर मामला दर्ज कर सकती है। अगर कुछ भी गलत हुआ है, तो केंद्रीय (जांच) एजेंसियों को एक रिपोर्ट पेश करनी चाहिए थी। एफआईआर या शिकायत का इंतज़ार क्यों किया जाए? कोई भी कानून से ऊपर नहीं होना चाहिए।” यह टिप्पणी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह जांच एजेंसियों की स्वतः संज्ञान लेने (suo motu action) की शक्ति और कानून के शासन (rule of law) के सिद्धांत पर जोर देती है। न्यायालय ने यह भी संकेत दिया कि गंभीर मामलों में एजेंसियों को शिकायत का इंतजार किए बिना कार्रवाई करनी चाहिए।

न्यायमूर्ति कांत ने राजू से कहा कि वह CBI के वरिष्ठ अधिकारियों को अदालत में पेश होने के लिए कहें, क्योंकि वह उनसे कुछ सवाल पूछना चाहते हैं। यह अदालत की गंभीरता और मामले की तह तक जाने की इच्छा को दर्शाता है। पीठ ने इस मामले की अगली सुनवाई 30 जुलाई के लिए निर्धारित की है। इस सुनवाई में CBI के अधिकारियों की उपस्थिति और उनके जवाब बेहद महत्वपूर्ण होंगे।

 

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