Friday, August 1, 2025

India UK FTA : भारत ने ब्रिटिश कंपनियों के लिए सरकारी खरीद के खोले द्वार: ‘मेक इन इंडिया’ नीति को आयाम!

नई दिल्ली: भारत ने मुक्त व्यापार समझौते (India UK FTA ) के तहत ब्रिटिश कंपनियों को सरकारी खरीद (Government Procurement – GP) में बड़ी रियायतें देने का फैसला किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम सरकारी खरीद को घरेलू औद्योगिक विकास के माध्यम के बजाय एक अलग रणनीतिक बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के बाद, भारत ने बृहस्पतिवार को हस्ताक्षरित एफटीए के तहत कुछ शर्तों के अधीन, ब्रिटिश कंपनियों के लिए अपनी केंद्र सरकार की खरीद को खोल दिया है। यह कदम भारत के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के बावजूद लिया गया है, जो वैश्विक एकीकरण की दिशा में भारत की बढ़ती प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

‘मेक इन इंडिया’ नीति में नया दृष्टिकोण

इस नए समझौते के तहत, ब्रिटिश कंपनियां अब भारत में सरकारी निविदाओं (tenders) के लिए बोली लगा सकती हैं। सबसे खास बात यह है कि जिन ब्रिटिश कंपनियों के उत्पादों में केवल 20 प्रतिशत ब्रिटिश सामग्री (British content) होगी, उन्हें भारत की ‘मेक इन इंडिया’ (Make in India) नीति के तहत द्वितीय श्रेणी के स्थानीय आपूर्तिकर्ता (Class II Local Supplier) के रूप में माना जाएगा। यह एक महत्वपूर्ण बदलाव है, क्योंकि ‘मेक इन इंडिया’ नीति आमतौर पर घरेलू मूल्यवर्धन (domestic value addition) को प्राथमिकता देती है। इस प्रावधान से ब्रिटिश कंपनियों को भारतीय सरकारी खरीद बाजार में प्रवेश करने में आसानी होगी।

रणनीतिक बदलाव: GTRI की राय

आर्थिक शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (Global Trade Research Initiative – GTRI) ने इस कदम को एक रणनीतिक बदलाव (strategic shift) बताया है। जीटीआरआई ने कहा कि भारत एफटीए के तहत ब्रिटेन की कंपनियों को सरकारी खरीद में ‘सबसे व्यापक’ (most comprehensive) रियायतें दे रहा है। यह घरेलू औद्योगिक विकास के लिए सार्वजनिक खरीद को एक माध्यम के रूप में उपयोग करने से दूर एक रणनीतिक बदलाव को दर्शाता है। इसका मतलब यह हो सकता है कि भारत अब घरेलू उद्योगों के विकास के लिए केवल सरकारी खरीद पर निर्भर रहने के बजाय अन्य माध्यमों, जैसे निवेश प्रोत्साहन और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहा है।

समझौते का आधिकारिक नाम और हस्ताक्षर

इस समझौते को आधिकारिक तौर पर व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौता (Comprehensive Economic and Trade Agreement – CETA) कहा गया है। इस ऐतिहासिक समझौते पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और उनके ब्रिटिश समकक्ष केअर स्टार्मर (Keir Starmer) की उपस्थिति में लंदन में हस्ताक्षर किए गए। यह समझौता दोनों देशों के बीच व्यापार और आर्थिक संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।

ब्रिटिश कंपनियों के लिए $40,000 करोड़ के अनुबंध

जीटीआरआई ने आगे बताया कि भारत पहली बार परिवहन (transportation), हरित ऊर्जा (green energy) और बुनियादी ढांचा (infrastructure) जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों से ब्रिटिश बोलीदाताओं के लिए लगभग $40,000 करोड़ (लगभग 4.8 अरब डॉलर) के उच्च मूल्य के अनुबंध खोलेगा। यह ब्रिटिश कंपनियों के लिए भारत के विशाल सरकारी खरीद बाजार में प्रवेश करने का एक बड़ा अवसर है।

इसके अलावा, ब्रिटिश फर्मों को भारत के केंद्रीय सार्वजनिक खरीद पोर्टल (Central Public Procurement Portal – CPPP) और जीईएम (Government e-Marketplace – GeM) मंच के माध्यम से भाग लेने की अनुमति दी जाएगी। ये दोनों ही भारत में सरकारी खरीद के लिए प्रमुख ऑनलाइन प्लेटफॉर्म हैं, जो प्रक्रिया को पारदर्शी और सुलभ बनाते हैं।

भारत के लिए क्या है फायदा?

हालांकि, यह कदम ‘मेक इन इंडिया’ की भावना से कुछ अलग लग सकता है, लेकिन इसके कुछ रणनीतिक फायदे भी हो सकते हैं:

* प्रतिस्पर्धा में वृद्धि: ब्रिटिश कंपनियों की भागीदारी से सरकारी खरीद में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जिससे भारत को बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पाद और सेवाएं अधिक प्रतिस्पर्धी कीमतों पर मिल सकती हैं।
* प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: ब्रिटिश कंपनियों के भारतीय बाजार में आने से उन्नत प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता का हस्तांतरण हो सकता है, जिससे भारतीय उद्योगों को भी फायदा होगा।
* पारदर्शिता और दक्षता: वैश्विक खिलाड़ियों की भागीदारी से सरकारी खरीद प्रक्रियाओं में अधिक पारदर्शिता और दक्षता आ सकती है।
* वैश्विक व्यापार संबंधों को मजबूत करना: यह समझौता भारत को एक खुले और व्यापार-अनुकूल देश के रूप में प्रस्तुत करता है, जिससे अन्य देशों के साथ भी इसी तरह के समझौतों की संभावना बढ़ती है।

 

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