नई दिल्ली: भारत के लॉजिस्टिक्स (logistics) और माल ढुलाई (freight movement) क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव आने वाला है। वैश्विक लॉजिस्टिक्स दिग्गज डीपी वर्ल्ड (DP World), भारत के प्रमुख बंदरगाहों में से एकदीनदयाल बंदरगाह प्राधिकरण (Deendayal Port Authority – DPA), और अत्याधुनिक मैगलेव टेक्नोलॉजी (Maglev Technology) विशेषज्ञनेवोमो (Nevomo) ने एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते का उद्देश्य देश मेंस्वचालित ‘मैग्नेटिक’ मालगाड़ियों (automated ‘magnetic’ freight trains) की आवाजाही की संभावनाओं का पता लगाना है, जो भारतीय माल ढुलाई को पूरी तरह से बदल सकती है।
पायलट परियोजना का विकास: मैगरेल तकनीक का उपयोग
मंगलवार को जारी एक संयुक्त बयान में बताया गया कि यह समझौता कंपनियों को मौजूदा बंदरगाह परिवेश (port environment) के भीतर रेल-आधारित कार्गो (rail-based cargo) और माल ढुलाई की स्वचालित आवाजाही के लिएनेवोमो की मैगरेल प्रौद्योगिकी (Nevomo’s Magrail technology) का उपयोग करके एकपायलट परियोजना (pilot project) के विकास के अवसरों का पता लगाने में मदद करेगा। यह परियोजना भारत में अपनी तरह की पहली होगी और भविष्य की हाई-स्पीड (high-speed) और कुशल माल ढुलाई प्रणाली की नींव रखेगी।
मैगरेल तकनीक एक ऐसी प्रणाली है जो पारंपरिक ट्रेनों को चुंबकीय बल (magnetic force) का उपयोग करके उच्च गति पर चलने में सक्षम बनाती है, जिससे घर्षण (friction) कम होता है और ऊर्जा दक्षता (energy efficiency) बढ़ती है। यह तकनीक न केवल गति बढ़ाती है, बल्कि परिचालन लागत (operational costs) को भी कम कर सकती है और रखरखाव (maintenance) की आवश्यकता को घटा सकती है। बंदरगाह जैसे व्यस्त और महत्वपूर्ण क्षेत्रों में इस तकनीक का उपयोग करने से कार्गो हैंडलिंग (cargo handling) की गति और सुरक्षा में क्रांतिकारी सुधार आ सकते हैं।
समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर
इस महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले प्रमुख व्यक्ति थे:
दीनदयाल बंदरगाह प्राधिकरण (DPA) के चेयरमैन सुशील कुमार सिंह (Sushil Kumar Singh)
डीपी वर्ल्ड के पश्चिम एशिया, उत्तरी अफ्रीका, भारतीय उपमहाद्वीप के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (CEO) और प्रबंध निदेशक रिजवान सूमार (Rizwan Soomar)
नेवोमो ग्रुप बीवी (Nevomo Group BV) के सीईओ प्रेजेमेक (बेन) पाचेक (Przemek (Ben) Paczek)
इन प्रमुख हस्तियों की उपस्थिति इस परियोजना के महत्व और इसके पीछे की गंभीर प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
डीपीए चेयरमैन का बयान: रणनीतिक महत्व और दक्षता में वृद्धि
इस मौके पर डीपीए के चेयरमैन सुशील कुमार सिंह ने इस समझौते को लेकर अपना उत्साह व्यक्त किया। उन्होंने कहा, “यह समझौता बंदरगाह बुनियादी ढांचे (port infrastructure) को उन्नत करने, क्षमता बढ़ाने और बढ़ती कार्गो मांग को पूरा करने के लिए परिचालन दक्षता (operational efficiency) बढ़ाने की दिशा में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण कदम है।”
सिंह ने डीपी वर्ल्ड को एक “भरोसेमंद भागीदार” बताया और कहा कि उसने “इस पहल को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।” यह साझेदारी भारत के बंदरगाहों को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने और उनकी प्रतिस्पर्धी क्षमता (competitive edge) को बढ़ाने में मदद कर सकती है। वर्तमान में, भारतीय बंदरगाहों पर कार्गो की आवाजाही में समय और लागत दोनों अधिक लगती है। मैगरेल जैसी तकनीक से इसे काफी कम किया जा सकता है, जिससे भारतीय निर्यात और आयात (exports and imports) दोनों को बढ़ावा मिलेगा।
मैग्नेटिक मालगाड़ियां: भविष्य की लॉजिस्टिक्स का खाका
स्वचालित ‘मैग्नेटिक’ मालगाड़ियों की कल्पना करना ही रोमांचक लगता है। ये ट्रेनें बिना ड्राइवर के चलेंगी और चुंबकीय उत्तोलन (magnetic levitation) के सिद्धांत पर काम करेंगी, जिससे वे ट्रैक से ऊपर उठकर आगे बढ़ेंगी। इससे गति बढ़ेगी, ऊर्जा की खपत कम होगी और शोर तथा प्रदूषण (pollution) भी कम होगा।
भारत में, जहां माल ढुलाई का एक बड़ा हिस्सा अभी भी सड़क मार्ग से होता है, मैगरेल जैसी तकनीक का समावेश लॉजिस्टिक्स सेक्टर में क्रांति ला सकता है। यह न केवल परिवहन लागत (transportation costs) को कम करेगा, बल्कि लॉजिस्टिक्स की गति और विश्वसनीयता (reliability) में भी सुधार करेगा, जो ‘मेक इन इंडिया’ (Make in India) और ‘आत्मनिर्भर भारत’ (Atmanirbhar Bharat) जैसी पहलों के लिए महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष: भारत के लिए एक गेम चेंजर
यह समझौता भारत के बुनियादी ढांचे (infrastructure) और लॉजिस्टिक्स क्षेत्र के लिए एकगेम चेंजर (game changer) साबित हो सकता है। यह दर्शाता है कि भारत अब केवल मौजूदा तकनीकों को अपनाने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि भविष्य की उन्नत प्रौद्योगिकियों (advanced technologies) को भी तलाश रहा है। डीपी वर्ल्ड और नेवोमो जैसी अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञता वाली कंपनियों के साथ साझेदारी से भारत को मैगरेल तकनीक को स्थानीय जरूरतों के अनुसार अनुकूलित करने में मदद मिलेगी।
यदि यह पायलट परियोजना सफल होती है, तो यह देश भर के अन्य बंदरगाहों और औद्योगिक गलियारों (industrial corridors) में भी मैगरेल तकनीक के विस्तार का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। यह भारत को वैश्विक लॉजिस्टिक्स मानचित्र पर एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करने में मदद करेगा, जिससे देश की आर्थिक वृद्धि को नई गति मिलेगी।
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