नई दिल्ली: Bhushan Steel Case : भूषण स्टील एंड पावर लिमिटेड (BSPL – Bhushan Steel & Power Limited) के मामले में दिए गए अपने फैसले की समीक्षा के लिए दायर याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) 31 जुलाई, 2025 को सुनवाई करेगा। यह मामला भारतीय कॉरपोरेट जगत और दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (IBC – Insolvency and Bankruptcy Code) के तहत समाधान प्रक्रियाओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। शीर्ष अदालत ने 2 मई, 2025 के अपने फैसले में बीएसपीएल के अधिग्रहण के लिए जेएसडब्ल्यू स्टील लिमिटेड (JSW Steel Limited) की तरफ से पेश समाधान योजना (resolution plan) को अवैध बताते हुए उसे आईबीसी का उल्लंघन करार दिया था, जिससे पूरे मामले में एक नया मोड़ आ गया था।
Bhushan Steel Case समीक्षा याचिका स्वीकार
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ (D Y Chandrachud) और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा (Satish Chandra Sharma) की पीठ ने मंगलवार, 29 जुलाई 2025 को इस फैसले की समीक्षा का अनुरोध करने वाली याचिका स्वीकार करते हुए मामले की सुनवाई 31 जुलाई को दोपहर तीन बजे तय की है।
बीएसपीएल के पूर्व प्रवर्तकों संजय सिंघल (Sanjay Singal), उनके पिता बृज भूषण सिंघल (Brij Bhushan Singal) और भाई नीरज सिंघल (Neeraj Singal) ने 21 जुलाई को समीक्षा याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई (open court hearing) का अनुरोध किया था। यह अनुरोध दर्शाता है कि पक्षकार मामले की गंभीरता और सार्वजनिक महत्व को समझते हुए पूरी पारदर्शिता चाहते हैं।
Bhushan Steel Case किन-किन ने दायर की याचिकाएं?
कानूनी फर्म करंजावाला एंड कंपनी (Karanjawala & Co.) ने बताया कि केवल पूर्व प्रवर्तकों ने ही नहीं, बल्कि कर्ज समाधान का प्रस्ताव लेकर आने वाली जेएसडब्ल्यू स्टील, ऋणदाताओं की समिति (CoC – Committee of Creditors) और समाधान पेशेवर (Resolution Professional) ने भी 2 मई के फैसले की समीक्षा के लिए याचिकाएं दाखिल की हैं। यह इंगित करता है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सभी प्रमुख हितधारक (stakeholders) प्रभावित हुए हैं और वे इसे चुनौती दे रहे हैं।
Bhushan Steel Case सुप्रीम कोर्ट की आलोचना
बीएसपीएल के पूर्व निदेशकों ने राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (NCLT – National Company Law Tribunal) से परिसमापन (liquidation) की प्रक्रिया शुरू करने की अपील की थी। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने 26 मई, 2025 को जेएसडब्ल्यू की विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition – SLP) पर सुनवाई करते हुए परिसमापन पर रोक (stayed liquidation) लगा दी थी। यह रोक महत्वपूर्ण थी क्योंकि इसने कंपनी को तत्काल परिसमापन में जाने से बचा लिया।
शीर्ष अदालत ने 2 मई के अपने फैसले में बीएसपीएल के सभी पक्षकारों – समाधान पेशेवर, सीओसी और एनसीएलटी – की कड़ी आलोचना की थी। कोर्ट ने कहा था कि समाधान प्रक्रिया में “आईबीसी का घोर उल्लंघन (gross violation of IBC)” हुआ है। यह एक बहुत ही गंभीर टिप्पणी है, खासकर जब यह दिवाला कानून की प्रभावशीलता और उसके कार्यान्वयन पर सवाल उठाती है।
उच्चतम न्यायालय ने विशेष रूप से कहा था कि कर्ज समाधान योजना को मंजूरी देने में कर्जदाताओं की समिति ने वाणिज्यिक सूझबूझ (commercial wisdom) का परिचय नहीं दिया था, क्योंकि यह योजना आईबीसी के प्रावधानों का पूरी तरह उल्लंघन करती है। यह टिप्पणी इस बात पर ज़ोर देती है कि सीओसी को न केवल वित्तीय लाभ देखना चाहिए, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी योजनाएं कानूनी ढांचे के भीतर हों।
IBC और भूषण स्टील मामले का महत्व
भूषण स्टील का मामला भारतीय दिवाला कानून के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय रहा है। यह आईबीसी के तहत आने वाले सबसे बड़े और जटिल मामलों में से एक है। सुप्रीम कोर्ट का 2 मई का फैसला इस बात को रेखांकित करता है कि आईबीसी प्रक्रिया में कानूनी प्रावधानों का कड़ाई से पालन कितना ज़रूरी है, और “वाणिज्यिक सूझबूझ” की भी अपनी सीमाएं हैं।
इस मामले की समीक्षा सुनवाई का परिणाम न केवल बीएसपीएल और जेएसडब्ल्यू स्टील के भाग्य को निर्धारित करेगा, बल्कि भविष्य में आईबीसी के तहत अन्य समाधान प्रक्रियाओं के लिए भी एक महत्वपूर्ण मिसाल (precedent) कायम करेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट अपने पिछले फैसले को बरकरार रखता है, उसे संशोधित करता है, या उसे पूरी तरह से पलट देता है। यह फैसला भारत में दिवाला समाधान के परिदृश्य को काफी प्रभावित कर सकता है।