गुरूग्राम। Roinet की BC Sakhi पहल से ग्रामीण महिलाओं की ज़िंदगी बदलनी शुरू हो गई है। भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था (`digital economy`) भले ही तेज़ी से आगे बढ़ रही हो, लेकिन इसका लाभ सभी को समान रूप से नहीं मिल पा रहा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) के आंकड़े बताते हैं कि जहाँ 49% पुरुष इंटरनेट का उपयोग करते हैं, वहीं महिलाओं में यह संख्या केवल 25% है। यह `डिजिटल लैंगिक अंतर` (digital gender gap) ग्रामीण इलाकों में और भी ज़्यादा गहरा हो जाता है, जहाँ सामाजिक और आर्थिक पाबंदियाँ महिलाओं को डिजिटल दुनिया से दूर रखती हैं।
इन्हीं चुनौतियों को दूर करने के लिए गुरुग्राम की फिनटेक कंपनी (fintech company) ‘रोइनेट’ ने मई 2020 में एक ख़ास पहल, ‘बीसी-सखी’, की शुरुआत की थी। इस पहल का उद्देश्य ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों की महिलाओं को `बैंकिंग संवाददाता` (Banking Correspondents) के रूप में प्रशिक्षित करना है, ताकि वे अपने समुदाय के लोगों को घर-घर जाकर वित्तीय सेवाएँ दे सकें और उन्हें डिजिटल रूप से सशक्त बना सकें।
‘फिजिटल’ अप्रोच से हुआ बदलाव
Roinet की ‘बीसी-सखी’ पहल का मूल मंत्र “फिजिटल” (Phygital) है, जिसका मतलब है `फिजिकल` (physical) यानी प्रत्यक्ष उपस्थिति और `डिजिटल टूल्स` (digital tools) का एक अनोखा मेल।
– शुरुआत और विकास: यह पहल सिर्फ 105 बीसी-सखियों के साथ शुरू हुई थी। आज यह संख्या 10,000 से अधिक सक्रिय बीसी-सखियों तक पहुँच चुकी है, जो पूरे भारत में ग्रामीण समुदायों की सेवा कर रही हैं।
– मिलने वाले उपकरण: इन महिलाओं को स्मार्टफोन, बायोमेट्रिक माइक्रो-एटीएम (`biometric micro-ATM`) और एक यूज़र-फ्रेंडली ऐप (`user-friendly app`) जैसे आधुनिक उपकरणों से लैस किया गया है, जिससे वे आसानी से बैंक खाते खोलने, पैसे निकालने और जमा करने जैसी सेवाएँ दे सकती हैं।
– मासिक आय: इस पहल से जुड़कर कई महिलाएँ पहली बार कमाई कर रही हैं और उनकी मासिक आय ₹10,000 से ₹50,000 तक पहुँच गई है।
प्रेरणादायक कहानियाँ: जब महिलाओं ने बदली अपनी तकदीर
बीसी-सखी पहल ने हज़ारों महिलाओं के जीवन में एक नया अध्याय लिखा है।
– जयलक्ष्मी देवी की कहानी: वाराणसी की 35 वर्षीय जयलक्ष्मी देवी की कहानी बहुत प्रेरणादायक है। जब वह बीसी-सखी बनीं, तो उन्हें समाज में कोई गंभीरता से नहीं लेता था। वह बताती हैं, “लोग कहते थे कि यह क्या सिखाएगी बैंकिंग? लेकिन आज स्थिति यह है कि उनके सारे वित्तीय कामकाज मैं ही संभाल रही हूँ।”
– रिया शर्मा की कहानी: इसी तरह, 36 वर्षीय रिया शर्मा, जो स्नातक होने के बावजूद पहले कभी कहीं काम नहीं करती थीं, आज अपने परिवार के सहयोग से हर महीने ₹14,000 से ₹15,000 कमा रही हैं। वह कहती हैं कि यह सब संभव हुआ क्योंकि उन्होंने सही दिशा में अपना पहला कदम बढ़ाया।
समाज की सोच को बदलना: ‘घूंघट से बैंकर’ बनने का सफ़र
Roinet के संस्थापक और प्रबंध निदेशक, समीर माथुर कहते हैं कि शुरुआत में ग्रामीण भारत में महिलाओं के बैंकिंग सेवाएँ देने की अवधारणा को लेकर संदेह था।
– संदेह से विश्वास तक: माथुर कहते हैं, “लोग पूछते थे, ‘घूंघट में रहने वाली महिला बैंकिंग सेवा कैसे देगी?'” लेकिन उन्होंने इन महिलाओं में सीखने, कमाने और समाज में अपनी पहचान बनाने की ललक देखी।
– पहचान में बदलाव: समीर माथुर के अनुसार, बीसी-सखी बनना कई महिलाओं के जीवन में एक मोड़ साबित हुआ। “अब वह सिर्फ़ किसी की पत्नी या माँ नहीं है, वह एक बैंकर है। यह उसकी पहचान को और खुद की नज़र को बदल देता है।”
– आने वाली पीढ़ियों पर असर: माथुर ने एक और दिल छू लेने वाली बात बताई। उनकी एक बीसी-सखी ने उन्हें बताया कि अब उसका बेटा भी `बैंकर` बनना चाहता है, क्योंकि उसकी माँ यह सेवा देती है। यह दिखाता है कि इस पहल का प्रभाव न सिर्फ़ वर्तमान पर, बल्कि आने वाली पीढ़ियों पर भी पड़ रहा है।
रोइनेट की बीसी-सखी पहल सिर्फ़ एक बिज़नेस मॉडल (`business model`) नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण (`women’s empowerment`) और डिजिटल समावेशन (`digital inclusion`) का एक शक्तिशाली उदाहरण है। यह पहल दिखाती है कि अगर सही अवसर और उपकरण दिए जाएँ, तो महिलाएँ किसी भी चुनौती का सामना कर सकती हैं और समाज में अपनी एक नई पहचान बना सकती हैं।
Latest Business News in Hindi, Stock Market Updates सबसे पहले मिलेंगे आपको सिर्फ Business Buzz Times पर. बिजनेस न्यूज़ और अन्य देश से जुड़ी खबरें से जुड़े अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें Facebook पर ज्वॉइन करें, Twitter(X) पर फॉलो करें और Youtube Channel सब्सक्राइब करे।