Thursday, July 31, 2025

Rupee चार माह से अधिक के निचले स्तर पर पहुंचा; डॉलर की मज़बूती और कच्चे तेल में उछाल बनी वजह!

मुंबई: Indian Rupee मंगलवार, 29 जुलाई 2025 को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 21 पैसे की भारी गिरावट (sharp decline of 21 paise) के साथ 86.91 पर बंद हुआ। यह चार महीने से अधिक का निचला स्तर है। इस गिरावट का मुख्य कारण डॉलर में आई मज़बूती (strengthening US dollar) और कच्चे तेल की कीमतों में उछाल (spike in crude oil prices) रहा। विदेशी मुद्रा विनिमय बाज़ार में यह उठा-पटक निवेशकों की चिंता बढ़ा रही है।

Rupee पर दबाव के मुख्य कारण

विदेशी मुद्रा कारोबारियों ने बताया कि रुपये पर दबाव के कई कारण थे:

– पेट्रोलियम विपणन कंपनियों (OMCs – Oil Marketing Companies) और आयातकों (importers) की ओर से मासांत की डॉलर मांग (month-end dollar demand) ने रुपये को और कमज़ोर किया। आमतौर पर महीने के अंत में कंपनियों को अपने आयात बिलों का भुगतान करने के लिए डॉलर की ज़रूरत होती है।
– इसके अलावा, इस सप्ताह अमेरिकी फेडरल रिज़र्व (US Federal Reserve) और बैंक ऑफ जापान (Bank of Japan) की मौद्रिक नीति (monetary policy) के फैसलों से पहले निवेशक सतर्क हैं। केंद्रीय बैंकों के ये फैसले वैश्विक वित्तीय बाज़ारों पर बड़ा प्रभाव डालते हैं।

Rupee की ट्रेडिंग और ऐतिहासिक स्तर

अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाज़ार में रुपया 86.76 प्रति डॉलर पर खुला। कारोबार के दौरान, यह 86.92 प्रति डॉलर के निचले स्तर को छू गया, जो 17 मार्च, 2025 के 86.81 प्रति डॉलर के बंद स्तर से भी नीचे का स्तर है। कारोबार के अंत में यह 86.91 प्रति डॉलर पर बंद हुआ, जो पिछले बंद भाव से 21 पैसे की भारी गिरावट है। सोमवार को रुपया डॉलर के मुकाबले 86.70 पर बंद हुआ था।

विशेषज्ञों की राय और वैश्विक कारक

मिराए एसेट शेयरखान (Mirae Asset Sharekhan) के शोध विश्लेषक अनुज चौधरी (Anuj Choudhary) ने कहा, “अमेरिकी डॉलर में तेज़ी व कच्चे तेल की कीमतों में उछाल के कारण भारतीय रुपया करीब 20 पैसे गिर गया। अमेरिका-यूरोपीय संघ व्यापार समझौते को लेकर आशावाद से अमेरिकी डॉलर में मज़बूती आई।” अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच किसी भी सकारात्मक व्यापार समझौते की संभावना से अमेरिकी डॉलर में निवेश बढ़ सकता है, जिससे अन्य मुद्राओं के मुकाबले उसकी ताकत बढ़ती है।

हालांकि, उन्होंने यह भी बताया कि “पिछले तीन सत्रों की भारी गिरावट के बाद घरेलू शेयर बाज़ारों में आई तेज़ी ने गिरावट को कुछ कम किया।” भारतीय शेयर बाज़ारों में उछाल आमतौर पर निवेशकों के विश्वास को बढ़ाता है, लेकिन इस बार यह रुपये की गिरावट को पूरी तरह से रोक नहीं पाया।

डॉलर सूचकांक और अन्य बाज़ार संकेतक

इस बीच, छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक (Dollar Index) 0.13 प्रतिशत की बढ़त के साथ 98.75 पर पहुंच गया। डॉलर सूचकांक का बढ़ना दर्शाता है कि डॉलर वैश्विक स्तर पर मज़बूत हो रहा है, जिसका सीधा असर रुपये जैसी उभरती बाज़ार मुद्राओं पर पड़ता है।

घरेलू शेयर बाज़ारों में, बीएसई सेंसेक्स (BSE Sensex) 446.93 अंक की बढ़त के साथ 81,337.95 अंक पर जबकि निफ्टी (Nifty) 140.20 अंक चढ़कर 24,821.10 अंक पर बंद हुआ। यह दर्शाता है कि घरेलू इक्विटी बाज़ार में सकारात्मक धारणा बनी हुई है, भले ही रुपये पर दबाव है।

अंतरराष्ट्रीय मानक ब्रेंट क्रूड (Brent Crude) 0.46 प्रतिशत की बढ़त के साथ 70.36 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर रहा। कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें भारत के लिए चिंता का विषय हैं, क्योंकि भारत अपनी तेल ज़रूरतों का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है, जिससे आयात बिल बढ़ता है और रुपये पर दबाव पड़ता है।

शेयर बाज़ार के आंकड़ों के मुताबिक, विदेशी संस्थागत निवेशक (FIIs – Foreign Institutional Investors) पूंजी बाज़ार में शुद्ध बिकवाल (net sellers) रहे। उन्होंने मंगलवार को शुद्ध रूप से ₹4,636.60 करोड़ के शेयर बेचे। विदेशी निवेशकों द्वारा पूंजी निकालना रुपये की गिरावट का एक और प्रमुख कारण हो सकता है।

 

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