नई दिल्ली: ED को लेकर भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने गुरुवार को उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) में एक बड़ा खुलासा किया है। उन्होंने बताया कि प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate – ED) ने अब तक क़रीब ₹23,000 करोड़ का काला धन बरामद करके उसे उन लोगों में वितरित किया है जो वित्तीय अपराधों के शिकार हुए थे। यह बयान प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की विशेष पीठ के सामने दिया गया, जो एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई कर रही थी।
यह सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के 2 मई के एक विवादास्पद फ़ैसले पर पुनर्विचार करने वाली याचिकाओं पर हो रही थी। इस फ़ैसले में भूषण स्टील एंड पावर लिमिटेड (BSPL) के लिए जेएसडब्ल्यू स्टील (JSW Steel) की समाधान योजना को ख़ारिज कर दिया गया था। हालाँकि, कोर्ट ने बाद में इस फ़ैसले को वापस ले लिया था और इस पर नए सिरे से सुनवाई करने का निर्णय लिया था।
ED ने ₹23,000 करोड़ का काला धन बरामद कर पीड़ितों को लौटाया
सुनवाई के दौरान जब एक वकील ने BSPL मामले में ईडी की जाँच का हवाला दिया, तो प्रधान न्यायाधीश ने चुटकी लेते हुए कहा, “ईडी यहाँ भी मौजूद है।” इसके जवाब में, तुषार मेहता ने एक ऐसा तथ्य बताया जो शायद ही कभी सार्वजनिक रूप से सामने आया हो।
उन्होंने कहा, “मैं एक तथ्य बताना चाहता हूँ जो किसी भी अदालत में कभी नहीं कहा गया और वह यह है कि… ईडी ने ₹23,000 करोड़ (काला धन) बरामद कर पीड़ितों को दिए हैं।” मेहता ने यह भी स्पष्ट किया कि बरामद किया गया यह धन सरकारी ख़ज़ाने में नहीं जाता, बल्कि सीधे उन लोगों को दिया जाता है जो वित्तीय अपराधों से प्रभावित हुए हैं। यह जानकारी ईडी की भूमिका को सिर्फ़ जाँच एजेंसी से हटकर पीड़ितों को न्याय दिलाने वाली एक इकाई के रूप में भी स्थापित करती है।
सजा की दर पर सवाल और आपराधिक न्याय प्रणाली पर चर्चा
प्रधान न्यायाधीश ने मेहता से एक महत्वपूर्ण सवाल पूछा, “सजा की दर क्या है?” इस पर मेहता ने स्वीकार किया कि दंडात्मक अपराधों में सजा की दर बहुत कम है। उन्होंने इसका मुख्य कारण देश की आपराधिक न्याय प्रणाली (criminal justice system) की कमियों को बताया।
इस पर प्रधान न्यायाधीश ने एक और तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “भले ही उन्हें दोषी न ठहराया गया हो, लेकिन आप लगभग बिना किसी सुनवाई के उन्हें (आरोपियों को) सजा देने में वर्षों से सफल रहे हैं।” यह टिप्पणी ईडी की कार्यप्रणाली पर एक बड़ा सवाल खड़ा करती है, जहाँ आरोपी बिना किसी दोषसिद्धि के भी लंबे समय तक क़ानूनी प्रक्रिया में उलझे रहते हैं।
छापेमारी के दौरान मशीनों का खराब होना और मीडिया विमर्श
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए तुषार मेहता ने कुछ हालिया छापों का ज़िक्र किया, जहाँ भारी मात्रा में नकदी मिली थी। उन्होंने कहा कि कुछ नेताओं के यहाँ छापे पड़ने पर इतनी ज़्यादा नकदी मिली कि कैश गिनने वाली मशीनें तक ख़राब हो गईं और हमें नई मशीनें लानी पड़ीं।
हालाँकि, प्रधान न्यायाधीश ने साफ़ किया कि न्यायालय इन तरह के “विमर्शों” से प्रभावित नहीं होते। उन्होंने कहा, “हम विमर्शों के आधार पर मामलों का फ़ैसला नहीं करते… मैं समाचार चैनल नहीं देखता। मैं सुबह केवल 10-15 मिनट अख़बारों की सुर्खियाँ देखता हूँ।” यह बयान उन लोगों को एक संदेश है जो सोशल मीडिया और न्यूज़ चैनलों पर चल रही बहसों के आधार पर अदालतों के फ़ैसले का अनुमान लगाते हैं।
ED की कार्यप्रणाली पर सुप्रीम कोर्ट की पुरानी टिप्पणियाँ
यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हों। पिछली कई पीठें, ख़ासकर विपक्षी नेताओं से जुड़े धन शोधन के मामलों में, ईडी की कथित मनमानी की आलोचना करती रही हैं। प्रधान न्यायाधीश की अगुवाई वाली एक अन्य पीठ ने 21 जुलाई को एक अन्य मामले में कहा था कि प्रवर्तन निदेशालय “सारी हदें पार कर रहा है।”
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