नई दिल्ली/स्टाफ टीम। भारतीय टेक्नोलॉजी सेक्टर (technology sector) के लिए अप्रैल-जून तिमाही (अप्रैल-जून 2025) में निवेश के मोर्चे पर कुछ चिंताजनक संकेत मिले हैं। एक नई रिपोर्ट के अनुसार, इस तिमाही में देश के प्रौद्योगिकी क्षेत्र में केवल 46 करोड़ डॉलर मूल्य के 60 सौदे (जिसमें आईपीओ और क्यूआईपी भी शामिल हैं) हुए हैं। वित्तीय सेवा कंपनी ग्रांट थॉर्नटन भारत (Grant Thornton Bharat) द्वारा जारी यह आंकड़ा पिछली जनवरी-मार्च तिमाही की तुलना में निवेश की गतिविधियों में उल्लेखनीय गिरावट को दर्शाता है, जो बाजार में एक ‘सतर्क निवेश धारणा’ (cautious investment sentiment) की ओर इशारा करता है।
आंकड़ों में दिखी भारी गिरावट: मूल्य और मात्रा दोनों प्रभावित
ग्रांट थॉर्नटन भारत की ‘2025 की दूसरी तिमाही में प्रौद्योगिकी सौदों’ पर आधारित रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल-जून तिमाही के आंकड़ों में पिछली जनवरी-मार्च तिमाही की तुलना में मात्रा (volume) के हिसाब से 34 प्रतिशत की गिरावट आई है। लेकिन सबसे बड़ी गिरावट सौदों के मूल्य (deal value) के मामले में देखी गई है, जहां 79 प्रतिशत की तेज गिरावट दर्ज की गई। यह दर्शाता है कि न केवल सौदों की संख्या कम हुई है, बल्कि बड़े सौदों की संख्या भी काफी घट गई है।
रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है, “भारत के प्रौद्योगिकी क्षेत्र में 46 करोड़ डॉलर मूल्य के 60 सौदे हुए, जिनमें आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (Initial Public Offering – IPO) और पात्र संस्थागत नियोजन (Qualified Institutional Placement – QIP) गतिविधियां शामिल हैं…यह मौजूदा व्यापक आर्थिक चुनौतियों (macroeconomic challenges) के बीच अधिक सतर्क निवेश माहौल को दर्शाता है।”
पहली तिमाही का मजबूत प्रदर्शन और तुलना
यह गिरावट इसलिए भी ध्यान देने योग्य है क्योंकि 2025 की पहली तिमाही (जनवरी-मार्च) को बड़े निवेश सौदों से बढ़ावा मिला था। उस तिमाही में कुछ बड़े निजी इक्विटी लेनदेन (private equity transactions) और विशेष रूप से हेक्सावेयर टेक्नोलॉजीज (Hexaware Technologies) के 1 अरब डॉलर के आईपीओ ने कुल डील वैल्यू को काफी ऊपर पहुंचा दिया था। दूसरी तिमाही में ऐसे बड़े ‘एंकर डील्स’ (anchor deals) की अनुपस्थिति ने कुल मूल्य को काफी प्रभावित किया है।
यदि सार्वजनिक बाजार गतिविधियों (public market activities) जैसे आईपीओ और क्यूआईपी को छोड़ दिया जाए, तो इस तिमाही में 43.4 करोड़ डॉलर मूल्य के 58 सौदे हुए। यह आंकड़ा भी पिछली तिमाही की तुलना में मात्रा में 35 प्रतिशत और मूल्य में 61 प्रतिशत कम है। इससे पता चलता है कि निजी फंडिंग (private funding) के मोर्चे पर भी निवेशकों का रवैया cautious रहा है।
बदलते ट्रेंड्स: छोटे और मूल्य-आधारित लेनदेन की ओर झुकाव
हालांकि गिरावट चिंताजनक है, रिपोर्ट एक और महत्वपूर्ण बदलाव की ओर इशारा करती है। रिपोर्ट कहती है कि दूसरी तिमाही में हुए बदलाव से पता चलता है कि अब बाजार में छोटे, मूल्य-आधारित लेनदेन (value-based transactions) के प्रति निवेशकों की रुचि दोबारा बढ़ी है। इसका मतलब है कि निवेशक अब बड़े दांव लगाने के बजाय, उन कंपनियों में निवेश करना पसंद कर रहे हैं जिनकी वैल्यूएशन (valuation) अधिक यथार्थवादी (realistic) है और जो मजबूत व्यावसायिक मॉडल (business model) और विकास की स्पष्ट क्षमता (clear growth potential) दिखा रही हैं।
यह रुझान बाजार के ‘री-कैलिब्रेशन’ (re-calibration) को भी दर्शाता है, जहां पिछली कुछ तिमाहियों में देखी गई अत्यधिक वैल्यूएशन अब कम हो रही है। निवेशक अब ‘ग्रोथ एट एनी कॉस्ट’ (growth at any cost) के बजाय ‘प्रॉफिटेबल ग्रोथ’ (profitable growth) पर अधिक ध्यान दे रहे हैं।
निवेश माहौल पर व्यापक आर्थिक चुनौतियां का असर
भारतीय टेक्नोलॉजी सेक्टर वैश्विक और घरेलू दोनों तरह की व्यापक आर्थिक चुनौतियों से प्रभावित हुआ है:
* वैश्विक आर्थिक मंदी का डर: दुनिया भर में ब्याज दरों में वृद्धि (interest rate hikes) और मंदी के बढ़ते डर ने निवेशकों को अधिक सतर्क बना दिया है।
* फंडिंग विंटर (Funding Winter): ग्लोबल स्तर पर फंडिंग विंटर या ‘पूंजी की सर्दी’ का असर भारतीय स्टार्टअप्स (startups) और टेक्नोलॉजी कंपनियों पर भी दिख रहा है। निवेशक अब पहले की तरह आसानी से पूंजी नहीं लगा रहे हैं।
* लाभप्रदता पर जोर: निवेशक अब उन कंपनियों को प्राथमिकता दे रहे हैं जो न केवल राजस्व में वृद्धि (revenue growth) कर रही हैं, बल्कि लाभप्रदता (profitability) भी दिखा रही हैं।
* वैल्यूएशन करेक्शन (Valuation Correction): पिछले कुछ सालों में टेक्नोलॉजी कंपनियों की अत्यधिक वैल्यूएशन में अब करेक्शन देखा जा रहा है।
यह ‘सतर्क’ रवैया अल्पकालिक रूप से फंडिंग को कम कर सकता है, लेकिन दीर्घकालिक रूप से यह भारतीय टेक्नोलॉजी इकोसिस्टम (ecosystem) के लिए स्वस्थ हो सकता है, क्योंकि यह अधिक टिकाऊ और लाभ-केंद्रित व्यवसायों को बढ़ावा देगा।
आगे क्या? भारतीय टेक सेक्टर का भविष्य
आने वाली तिमाहियों में यह देखना दिलचस्प होगा कि भारतीय टेक्नोलॉजी सेक्टर में निवेश का माहौल कैसे विकसित होता है। अगर वैश्विक आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और ब्याज दरें स्थिर होती हैं, तो निवेश गतिविधियों में फिर से तेजी आ सकती है। हालांकि, ‘स्मार्ट मनी’ (smart money) का रुझान अब उन कंपनियों की ओर अधिक रहेगा जो नवाचार (innovation), मजबूत बुनियादी सिद्धांतों (strong fundamentals) और लाभदायक विकास पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
भारतीय टेक सेक्टर की अंतर्निहित क्षमता (inherent potential) अभी भी मजबूत है, खासकर भारत के बड़े घरेलू बाजार, डिजिटल पैठ (digital penetration) और कुशल प्रतिभा पूल (skilled talent pool) को देखते हुए। यह गिरावट शायद एक अस्थायी ठहराव है, जो बाजार को अधिक परिपक्व (mature) और विवेकपूर्ण (prudent) निवेश की ओर धकेल रहा है।
क्या आप जानना चाहेंगे कि ऐसी स्थिति में भारतीय स्टार्टअप्स को किन रणनीतियों पर ध्यान देना चाहिए?