Friday, August 1, 2025

Potato की कीमतों में भारी गिरावट से किसानों और कोल्ड स्टोरेज मालिकों पर संकट: सरकार से गुहार!

कोलकाता: पश्चिम बंगाल में आलू (Potato) उत्पादक किसानों और कोल्ड स्टोरेज (cold storage) संचालकों पर एक बड़ा संकट मंडरा रहा है। पश्चिम बंगाल शीत श्रृंखला संघ (West Bengal Cold Storage Association – WBCSA) ने शुक्रवार को थोक आलू की कीमतों (wholesale potato prices) में भारी गिरावट पर गहरी चिंता व्यक्त की है। संघ ने चेतावनी दी है कि इससे किसानों और कोल्ड स्टोरेज संचालकों को भारी वित्तीय नुकसान होगा, और ग्रामीण क्षेत्रों में गहराते आर्थिक संकट को रोकने के लिए तत्काल सरकारी हस्तक्षेप (immediate government intervention) की आवश्यकता है।

किसानों पर दोहरा दबाव: बढ़ती कीमतों का अंतर

डब्ल्यूबीसीएसए के अध्यक्ष सुनील कुमार राणा (Sunil Kumar Rana) ने बताया कि थोक और खुदरा कीमतों के बीच बढ़ता अंतर किसानों पर भारी दबाव डाल रहा है। यह अंतर किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिलने दे रहा है। उन्होंने संवाददाताओं से कहा, “आलू की खेती और भंडारण का पूरा पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में है।” इस साल, किसानों के पास अपने आलू का लगभग 80 प्रतिशत भंडार है, और यदि कीमतें ऐसे ही गिरती रहीं, तो उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।

रिकॉर्ड भंडारण और अतिरिक्त आलू का बोझ

इस साल, पश्चिम बंगाल के कोल्ड स्टोरेज में रिकॉर्ड 70.85 लाख मीट्रिक टन (metric tons) आलू रखा हुआ है। इसमें पिछले मौसम में अंतर-राज्यीय आवाजाही पर प्रतिबंध के कारण 10 लाख टन अतिरिक्त अगेती किस्म का आलू (early variety potato) भी शामिल है, जिससे भंडारण पर और दबाव बढ़ गया है। वर्तमान में, अधिकांश भंडारण इकाइयां पूरी क्षमता से काम कर रही हैं (operating at full capacity), जिससे भविष्य में नए आलू के भंडारण की गुंजाइश कम हो गई है।

MSP से नीचे गिरी कीमतें: ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर खतरा

संघ के उपाध्यक्ष सुभाजीत साहा (Subhajit Saha) ने स्थिति की गंभीरता को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि ज्योति किस्म (Jyoti variety) के आलू का थोक मूल्य, जो मई में उतराई की शुरुआत के दौरान राज्य द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price – MSP) ₹15 प्रति किलोग्राम पर कारोबार कर रहा था, अब गिरकर ₹9 प्रति किलोग्राम रह गया है। यह एमएसपी से काफी कम है, जिससे किसानों को लागत निकालना भी मुश्किल हो रहा है।

साहा ने चेतावनी दी, “जब तक सरकार ₹15 प्रति किलोग्राम का थोक मूल्य सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप नहीं करती, ग्रामीण अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी और किसान अगले साल बुवाई से हतोत्साहित होंगे।” इसका सीधा मतलब है कि यदि किसानों को इस साल नुकसान होता है, तो वे अगले सीजन में आलू की खेती कम कर सकते हैं, जिससे भविष्य में आलू की कमी और कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है।

सरकारी वादे और संघ की मांगें

सुभाजीत साहा ने यह भी आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने किसानों से 11 लाख टन (या 2.2 करोड़ पैकेट) आलू खरीदने का अपना मार्च का वादा अभी तक पूरा नहीं किया है। यह वादा पूरा न होने से किसानों की परेशानी और बढ़ गई है।

डब्ल्यूबीसीएसए ने राज्य सरकार से कुछ सुधारात्मक उपाय करने का आग्रह किया है, जिनमें शामिल हैं:

1. एमएसपी पर तत्काल खरीद (immediate procurement at MSP): सरकार को तुरंत एमएसपी पर आलू की खरीद शुरू करनी चाहिए ताकि किसानों को उनकी लागत मिल सके।
2. अंतर-राज्यीय और अंतर्राष्ट्रीय आलू व्यापार को बढ़ावा देना (promote inter-state and international potato trade): राज्य को अन्य राज्यों और देशों में आलू के निर्यात को बढ़ावा देना चाहिए ताकि अतिरिक्त स्टॉक खपाया जा सके।
3. मध्याह्न भोजन जैसी जन कल्याणकारी योजनाओं में आलू को शामिल करना (include potatoes in welfare schemes like mid-day meals): सरकारी योजनाओं में आलू को शामिल करने से इसकी खपत बढ़ेगी और किसानों को बाजार मिल पाएगा।
4. परिवहन सब्सिडी शुरू करना (introduce transport subsidies): राज्य के बाहर स्टॉक की आवाजाही को सुगम बनाने के लिए परिवहन सब्सिडी शुरू करने की सिफारिश की गई है।

दीर्घकालिक नुकसान की चेतावनी

राणा ने चेतावनी दी, “अगर ये कदम तुरंत नहीं उठाए गए, तो मांग-आपूर्ति में असंतुलन पैदा होगा, बुवाई कम होगी, शीतगृहों का कम उपयोग होगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को दीर्घकालिक नुकसान हो सकता है।” संघ ने चेतावनी दी है कि ठोस नीतिगत समर्थन के बिना, राज्य की ₹10,000 करोड़ की आलू अर्थव्यवस्था (Rs 10,000 crore potato economy) को व्यापक संकट का सामना करना पड़ सकता है, जिसका सीधा असर किसानों, भंडारण इकाइयों और व्यापक ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। यह संकट केवल आलू किसानों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे कृषि क्षेत्र और ग्रामीण आजीविका को प्रभावित करेगा।

 

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