नई दिल्ली: भारत के टैक्स सिस्टम में एक बड़ा बदलाव होने वाला है, क्योंकि सरकार आयकर विधेयक-2025 (Income Tax Bill-2025) लाने की तैयारी में है, जो छह दशक पुराने आयकर अधिनियम, 1961 (Income Tax Act, 1961) का स्थान लेगा। इस नए विधेयक की समीक्षा करने वाली एक संसदीय समिति (Parliamentary Committee) ने सोमवार को कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं, जिनका असर व्यक्तिगत करदाताओं और धार्मिक एवं परमार्थ न्यासों (religious and charitable trusts) पर पड़ सकता है। ये सुझाव आम आदमी और गैर-लाभकारी संगठनों (non-profit organizations – NPOs) दोनों के लिए राहत लाने वाले हो सकते हैं।
व्यक्तिगत करदाताओं को TDS रिफंड में मिलेगी राहत
भाजपा सांसद बैजयंत पांडा (Baijayant Panda) की अध्यक्षता में लोकसभा की प्रवर समिति (Select Committee of Lok Sabha) ने आयकर विधेयक-2025 की समीक्षा के बाद अपनी रिपोर्ट पेश की। समिति ने सबसे महत्वपूर्ण सुझावों में से एक यह दिया है कि व्यक्तिगत करदाताओं को बिना किसी जुर्माने (without any penalty) के नियत तिथि (due date) के बाद भी आयकर रिटर्न (Income Tax Return – ITR) दाखिल करके स्रोत पर कर कटौती (Tax Deducted at Source – TDS) रिफंड का दावा करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
यह उन व्यक्तियों के लिए बड़ी राहत होगी जिन्हें आमतौर पर कर रिटर्न दाखिल करने की जरूरत नहीं होती है, लेकिन जिनका टीडीएस काट लिया जाता है। मौजूदा नियमों के तहत, यदि वे नियत तिथि के बाद रिटर्न दाखिल करते हैं, तो उन्हें रिफंड का दावा करने में कठिनाई होती है या जुर्माना लगता है। समिति ने सुझाव दिया है कि आयकर विधेयक में उस प्रावधान को हटाना चाहिए, जो करदाता के लिए नियत तिथि के भीतर आयकर रिटर्न दाखिल करना अनिवार्य बनाता है, ताकि वे अपने वैध रिफंड का दावा कर सकें।
धार्मिक एवं परमार्थ न्यासों को गुमनाम दान पर मिलेगी छूट!
समिति ने गैर-लाभकारी संगठनों (NPOs), विशेष रूप से धर्मार्थ और परमार्थ उद्देश्यों वाले संगठनों के लिए गुमनाम दान (anonymous donations) पर कर लगाने के संबंध में अस्पष्टता (ambiguity) को दूर करने का सुझाव दिया है।
आयकर विधेयक, 2025 के खंड 337 में सभी पंजीकृत एनपीओ को मिलने वाले गुप्त दान पर 30 प्रतिशत कर (30% tax) लगाने का प्रस्ताव रखा गया है, जिसमें केवल धार्मिक उद्देश्यों के लिए स्थापित एनपीओ को ही सीमित छूट दी गई है। यह आयकर अधिनियम, 1961 की वर्तमान धारा 115बीबीसी (Section 115BBC of Income Tax Act, 1961) से बिल्कुल अलग है। मौजूदा कानून में अधिक व्यापक छूट प्रदान की गई है। इसके मुताबिक, अगर कोई ट्रस्ट या संस्था पूरी तरह से धार्मिक और परमार्थ कार्यों के लिए बनाई गई हो, तो गुप्त दान पर कर नहीं लगाया जाता है।
समिति ने इस नए प्रस्ताव को लेकर चिंता व्यक्त की। समिति ने कहा, “विधेयक का घोषित मकसद इसके पाठ को सरल बनाना है, लेकिन समिति को लगता है कि धार्मिक एवं परमार्थ ट्रस्ट के संबंध में एक महत्वपूर्ण चूक हुई है, जिसका भारत के एनपीओ क्षेत्र के एक बड़े हिस्से पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।”
गौरतलब है कि ऐसे संगठन आमतौर पर पारंपरिक माध्यमों (जैसे दान पेटियों) से योगदान प्राप्त करते हैं, जहां दान देने वाले की पहचान करना असंभव होता है। संसदीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया है, “समिति 1961 के अधिनियम की धारा 115बीबीसी में दिए गए स्पष्टीकरण के अनुरूप एक प्रावधान को फिर से लागू करने का पुरजोर आग्रह करती है।” यह सुझाव धार्मिक और परमार्थ ट्रस्टों के लिए एक बड़ी जीत हो सकती है, जिससे उन्हें बिना किसी कर बोझ के गुमनाम दान स्वीकार करने की स्वतंत्रता मिलेगी।
गैर-लाभकारी संस्थाओं की ‘प्राप्तियों’ पर कर लगाने का विरोध
समिति ने गैर-लाभकारी संस्थाओं (एनपीओ) की ‘प्राप्तियों’ (receipts) पर कर लगाने का भी विरोध किया है, क्योंकि यह आयकर अधिनियम के तहत वास्तविक आय कराधान के सिद्धांत (principle of real income taxation) का उल्लंघन है। इसका मतलब है कि केवल एनपीओ की शुद्ध आय पर ही कर लगाया जाना चाहिए, न कि उनकी कुल प्राप्तियों पर। सुझावों में ‘आय’ (income) शब्द को फिर से लागू करने की सिफारिश की गई है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि केवल एनपीओ की शुद्ध आय पर ही कर लगाया जाए। यह एनपीओ के वित्तीय संचालन में अधिक स्पष्टता और निष्पक्षता लाएगा।
आगे का रास्ता: नए आयकर विधेयक का भविष्य
संसदीय समिति की ये सिफारिशें नए आयकर विधेयक के अंतिम स्वरूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। सरकार इन सुझावों पर विचार करेगी और उसके बाद ही विधेयक को अंतिम रूप दिया जाएगा। यह विधेयक भारत के कराधान परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा, और यह देखना दिलचस्प होगा कि ये सिफारिशें अंतिम कानून में कितनी शामिल होती हैं। यह कदम सरकार के उस वादे के अनुरूप है कि वह टैक्स कानूनों को सरल और अधिक प्रभावी बनाएगी, जबकि साथ ही करदाताओं और सामाजिक संगठनों के हितों का भी ध्यान रखेगी।